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Santhal Rebellion ! संथाल विद्रोह से जुड़ी संपूर्ण जानकारी | Santhal Vidroh In Hindi

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अगर भारतीय इतिहास की बात की जाए तो भारत के इतिहास में समय-समय पर हुए विभिन्न विद्रोह, युद्ध व् आंदोलनों के इतिहास को पढ़े बिना भारत के इतिहास की कल्पना भी नहीं की जा सकती। भारतीय इतिहास में हजारों ऐसी घटनाएं हैं जो विद्रोह युद्ध या आंदोलन से जुड़ी हुई हैं। अगर भारत के इतिहास का सही मायने में आंकलन किया जाए तो भारत के इतिहास में हुए विभिन्न युद्ध, विद्रोह भारत के पराक्रम को दर्शाते हैं। 

जी हां दोस्तों, आज का ये लेख भारतीय इतिहास में हुए विभिन्न विद्रोहों में से एक विद्रोह से सम्बंधित है जिसे संथाल विद्रोह के नाम से जाना जाता है। आज के  इस लेख में संथाल विद्रोह के सभी पहलुओं पर प्रकाश डाला गया है।

आज के इस लेख को पढ़ने के बाद आप संथाल विद्रोह से जुड़ी छोटी से छोटी जानकारी हासिल कर पाएंगे। जैसे संथाल क्या है? संथाल विद्रोह क्यों हुआ? संथाल विद्रोह कब हुआ? संथाल विद्रोह कैसे हुआ इत्यादि। तो चलिए देरी किये बिना जानते है संथाल विद्रोह के बारे में.......Santhal Vidroh About In Hindi...

संथाल का अर्थ क्या होता है?

संथाल भारत की प्राचीन जनजातियों में से एक है। प्राचीन समय में संथाल जनजाति (Santhal Rebellion In Bihar) बिहार व् पश्चिम बंगाल के कुछ इलाकों में निवास करती थी। इस जनजाति के लोगों का मुख्य व्यवसाय कृषि था।


इस जनजाति के लोग जंगलों को काटकर वहां की भूमि को खेती योग्य भूमि बनाकर उस पर कृषि किया करते थे। इस जनजाति का प्रमुख निवास स्थान कटक, हजारीबाग, भागलपुर, छोटा नागपुर, पलामू, पूर्णिया इत्यादि थे।

औपनिवेशक काल (भारत में अंग्रेज़ों के शासन काल को औपनिवेशिक या उपनिवेश काल कहा जाता है। यह काल सन् 1760 से 1947 ई. तक माना जाता है)  में संथाल जनजाति का बहुत बड़े भू-भाग पर अधिकार था। औपनिवेशिक काल के शुरुआती दौर में संथाल जनजाति का जीवन समृद्ध और खुशहाल था।

कोल जनजाति के जैसे ही संथालों ने भी लगभग उन्हीं कारणों के चलते अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह किया। संथाल जनजाति द्वारा किये गए इस विद्रोह को भी अंग्रेजी सेना ने कुचल डाला।

आइए जानते हैं संथाल विद्रोह के कारण और परिणाम को। संथाल विद्रोह (Santhal Rebellion) का दमन किस तरह अंग्रेजों ने किया, संथाल विद्रोह का महत्त्व क्या है और इस विद्रोह में कौन संथालों के तरफ से आगे खड़ा (प्रमुख नेता) हुआ आदि इस लेख के माध्यम से जानने की कोशिश करेंगे।

संथाल विद्रोह (Santhal Rebellion) क्यों हुआ व् इसकी शुरुआत कैसे हुई ? 

संथाल जनजाति (Santhal Rebellion Date) के लोग औपनिवेशिक काल के शुरुआती दौर में अपने जीवन को खुशहाली से जी रहे थे। वह अपने भोजन के लिए कृषि कर पर निर्भर रहते थे व् रहने के लिए जंगलों की भूमि का इस्तेमाल किया करते थे।


स्थायी बंदोबस्त के स्थापना के बाद संथालों की भूमि हांथ से निकल गयी। इसलिए संथालों ने वो भूमि छोड़ दिया और राजमहल की पहाड़ियों में रहने लगे। यहाँ की जमीन को संथालों ने कृषि के योग्य बनाया, जंगल काटकर घर बनाया। संथालों द्वारा बसाए गए इस इलाके को “दमनीकोह” के नाम से जाना गया।

सरकार की नज़र अब दमनीकोह पर भी पड़ी और वहाँ भी लगान वसूलने के लिए वो आ पहुंचे। फिर वहाँ जमींदारी स्थापित कर दी गई। अब उस इलाके में जमींदारों, महाजनों, साहूकारों और सरकारी कर्मचारियों का वर्चस्व बढ़ने लगा।

संथालों पर लगान की राशि इतनी रख दी गई कि लगान के बोझ तले वे सभी बिखरते चले गए। दमन का तांडव ऐसा था कि महाजनों द्वारा दिए गए कर्ज पर 50 से 500% तक का सूद वसूल किया जाने लगा।

संथाल लगान चुकाने में असमर्थ हो गये। इन सब कारणों के चलते संथाल किसानों की दरिद्रता बढ़ती चली गई। कर्ज न चुकाने के चलते उनके खेत, उनके पालतू जानवर आदि छीन लिए गए। संथालों को जमींदारों, महाजनों का गुलाम बनना पड़ा। संथालों को कहीं से भी न्याय मिलने वाला नहीं था। सरकारी कर्मचारी, पुलिस, थानेदार आदि सब भी जमींदारों, महाजनों का ही पक्ष लेते थे।

संथाल लोगों की खुशहाली व उनके द्वारा बसाया गया विस्तृत भू-भाग अंग्रेजों की आंखों में किरकिरी बन कर चुभता था। इसी कारण अंग्रेजों ने संथालों की भूमि को जमींदारों को देना शुरू कर दिया व् इस भूमि का वास्तविक अधिकार अंग्रेजों के पास रहता था। अब संथाल जनजाति के लोगों के साथ एक खेल खेला जाने लगा। जमींदार संथाल कृषकों से इस भूमि पर कृषि कराने लगे और उसके ऐवज में भूमि कर लेने लगे।


वास्तव में जमींदार अंग्रेजों और संथालों के बीच की कड़ी थी जो संथालों से कर लेकर अंग्रेजों तक पहुंचाते थे। धीरे-धीरे संथालों की समृद्धि खत्म होती चली गई और धीरे-धीरे यह जनजाति कर्ज में डूबने लगी। इसके बाद इस भू-भाग पर ऋण देने के लिए साहूकारों का जमावड़ा लग गया। अब संथाल लोग साहूकारों से कर्जा लेकर कृषि किया करते, भूमिकर देते व अपने परिवार को पालने लगे।

परिणामस्वरूप संथालों की आर्थिक व् समाजिक दशा दयनीय स्थिति में पहुंच गई।

अंततः अंग्रेजों, जमीदारों व् साहूकारों के शोषण से परेशान होकर संथालों ने विद्रोह का रास्ता चुना। उनके जीवन की यह निराशा एक दिन सरकार पर कहर बन कर टूट पड़ी।

संथाल विद्रोह का स्वरूप और प्रमुख नेता

वर्ष 1855 - 56 में संथालों ने सरदार धीर सिंह मांझी के नेतृत्व में एक दल बनाया और विद्रोह का बिगुल बजा दिया।

इस विद्रोह (Santhal Rebellion Year) के शुरुआत में सबसे पहले संथालों ने महाजनों व् साहूकारों को निशाना बनाया व् उनकी धन संपत्ति को लूटना आरंभ किया। इस विद्रोह के शुरुआती दौर में 4 शक्तिशाली संथाल नेता उभरे जिनके नाम कुछ इस तरह है.. सिद्धू, कान्हू, चांद व् भैरव।

सिद्धू ने खुद को देवदूत बतलाया ताकि संथाल समुदाय उनकी बातों पर विश्वास कर सके। संथालों के अंदर धर्म भावना पैदा करने के लिए सिद्धू ने कहा कि वह भगवान् “ठाकुर” के द्वारा भेजा गया एक दूत है जिन्हें वे रोज पूजते हैं।


30 जून 1855 को भगनाडीही गांव में इन चारों भाइयों ने एक विशाल आमसभा बुलाई। जिसमें इन चारो नेताओं समेत लगभग 10,000 संथाल लोगों ने भाग लिया।

भगनाडीही गांव में लगी उस बैठक में संथालों को यह विश्वास दिलाया गया कि खुद भगवान् ठाकुर की यह इच्छा है कि जमींदारी, महाजनी और सरकारी अत्याचारों के खिलाफ संथाल सम्प्रदाय डटकर उन सभी का विरोध करें तथा अंग्रेजी शासन को समाप्त कर दिया जाए।

इस बैठक में शपथ ली गई कि आज से संथाल (Santhal Rebellion Hindi) लोग जमींदारों, साहूकारों व् अंग्रेजों का शोषण नहीं सहेंगे बल्कि इसका मुंहतोड़ जवाब देंगे।

इस बैठक के पश्चात यह छोटा सा विद्रोह एक शक्तिशाली विद्रोह में बदल गया। शुरुआत में यह आंदोलन सरकार विरोधी आंदोलन नहीं था पर जब संथालों ने देखा कि सरकार भी जमींदारों, साहूकारों और महाजनों का पक्ष ले रही है तो उनका क्रोध सरकार पर भी टूट पड़ा।

संथालों (Santhal Rebellion Facts In Hindi) ने अत्याचारी दरोगा महेश लाल को मार डाला। उसके बाद बाजार, दुकान आदि चीजों को भी नष्ट कर दिया गया और थानों में आग लगा दी गई। कई सरकारी कार्यालयों, कर्मचारियों और महाजनों पर संथालों ने आक्रमण किया।

इस आंदोलन और आक्रमण के चलते कई सारे बेक़सूर भी मारे गए। भागलपुर और राजमहल के बीच रेल, डाक, तार सेवा आदि सेवा भंग कर दी गई। संथालों ने अंग्रेजी शासन को पूरी तरह से समाप्त करने की शपथ ले ली थी। संथाल विद्रोह (Santhal Rebellion) के आलावा हजारीबाग, मुंगेर, बाँकुड़ा, पूर्णिया, भागलपुर आदि जगहों में आग की तरह फ़ैल रही थी।

संथाल विद्रोह का दमन

ब्रिटिश सरकार संथाल की आक्रमकता देखकर अंदर से हिल चुकी थी। सरकार ने इस इस हिंसक कार्रवाई को सख्ती से दबाने का ऐलान किया। संथालों के विद्रोह का भयंकर रूप देखकर अंग्रेजी सरकार के भी कान खड़े हो गए और अंग्रेजी सरकार ने इसका हल खोजना शुरू कर दिया।


संथालों के द्वारा किए गए इस आंदोलन में अंग्रेजों, जमीदारों व साहूकारों को जमकर निशाना बनाया जाने लगा। इस दौरान अंग्रेज अफसरों के साथ जमकर लूटमार व् मारपीट की जा रही थी। परिणाम स्वरूप अंग्रेजी सरकार ने इस विद्रोह को समाप्त करने के लिए दमनकारी नीति को अपनाया।

संथालों द्वारा शुरू किये गये इस हिंसक कार्रवाई को सख्ती से दबाने का ऐलान किया। बिहार के भागलपुर और पूर्णिया से सरकार के द्वारा घोषणापत्र जारी किया गया कि अब संथाल के विद्रोह को जल्द से जल्द कुचल दिया जाए।

इस घोषणा पत्र के जारी होने के बाद कलकत्ता केजार बर्रों और पूर्णिया से सेना की एक टुकड़ी संथालों का दमन करने के लिए भेजी गई। फिर उसके बाद दमन का नग्न-नृत्य शुरू हुआ। संथाल जनजाति के लोगों के पास अधिक शक्ति नहीं थी और पर्याप्त शस्त्र-अस्त्र भी नहीं थे। की वे इस विद्रोह को ठीक से लड़ पाते, मात्र तीर और धनुष से वे कितने दिन टिकते?

संथाल विद्रोह (Santhal Rebellion) कैसे समाप्त हुआ ? 

संथाल विद्रोह (Santhal Rebellion History) को समाप्त करने के लिए अंग्रेजी सेना ने जमकर हथियारों का प्रयोग किया। ब्रिटिश सरकार के पत्र के अनुसार: संथाल लोगों के हाथ में हथियार दिखते ही उन्हें तुरंत गोली मारकर मौत के घाट उतार दिया जाता था। अंग्रेजी सेनाओं ने हजारों संथालों को पकड़ कर कठोर दंड देना शुरू कर दिया। उन्होंने हजारों संथालो को बंदी बना लिया और उन पर अनेक अत्याचार किए।

अंततः कई संथालों को गिरफ्तार कर लिया गया और 15 हज़ार से अधिक संथाल सैनिकों द्वारा मार गिराए गए। संथाल के नेता भी गिरफ्तार कर लिए गए और उन्हें भी मार दिया गया। अपने नेता के गिरफ्तारी से संथालों का मनोबल पूरी तरह से टूट गया। परिणामस्वरूप संथाल विद्रोह कमजोर पड़ गया और फरवरी 1856 ई. तक संथाल विद्रोह (Santhal Rebellion) समाप्त कर दिया गया।

संथाल विद्रोह (Santhal Rebellion) निष्कर्ष 

भले ही हजारों संथालों ने अपने हक के लिए कुर्बानी दी पर उन्होंने ये साबित कर दिया कि निरीह जनता भी दमन और अत्याचार एक हद तक बर्दास्त नहीं कर सकती। संथाल विद्रोह के परिणामस्वरूप ब्रिटिश सरकार को संथालों की दशा के बारे में विचार करना जरुरी हो गया व् उन्हें इस स्थिति से निकालने के लिए ब्रिटिश सरकार ने जायज कदम उठाने शुरू कर दिए। ब्रिटिश सरकार द्वारा संथालों को उनकी भूमि पर अधिकार दे दिया गया व् संथालों का अलग से संथाल परगना बना दिया गया।

सरकार को संथाल की माँगों को बाद में पूरा करने का प्रयास किया जाने लगा। कालांतर में सरकार ने संथालपरगना को जिला बनाया। फिर भी आदिवासियों पर दमन होता ही रहा। संथाल विद्रोह (Santhal Rebellion) की प्रेरणा लेकर आदिवासियों ने आगे भी सरकार के खिलाफ कई विद्रोह किए।


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