भूमि प्रदूषण या मृदा प्रदूषण
भूमि के भौतिकी,रासायनिक या जैविक गुणों में ऐसा अवांछनीय परिवर्तन जिसका प्रभाव मानव, जीवों या पेंड़-पौधों पर पड़ती हो तथा जिससे भूमि की उपयोगिता नष्ट हो भूमि प्रदूषण कहलाता है।
भूमि प्रदूषण के कारण
1. भू-क्षरण- भू-क्षरण द्वारा कृषि क्षेत्र की ऊपरी सतह की मिट्टी कुछ ही वर्षों में समाप्त हो जाती है,जबकि 6 सेंटीमीटर गहरी मिट्टी की पर्त के निर्माण में 24 सौ वर्ष लगते हैं।
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2. खनन- खनन से निकलने वाले मलबों को पास ही के किसी जगह में डाल दिया जाता है। वर्षा के समय यह मलबे जल के साथ मिलकर दूर दूर तक जाकर मृदा को प्रदूषित करता है।
3. कीटनाशक और कृत्रिम उर्वरक के द्वारा प्रदूषण- कीटनाशक तथा रासायनिक खाद फसल उत्पादन वृद्धि में सहयोग देते हैं,लेकिन धीरे-धीरे भूमि में इसका जमाव बढ़ने लगता है,जिससे सूक्ष्म जीवों का विनाश होता है तथा मिट्टी की तापमान वृद्धि से भूमि की गुणवत्ता नष्ट होती है।
4. औद्योगिक अपशिष्ट- उद्योगों में रसायनिक या अन्य प्रकार के कचरे होते हैं,जिसे आसपास या दूर किसी स्थान पर डाल दिया जाता है। जिस स्थान पर यह कचरा डाला जाता है उस स्थान को अपनी उपजाऊ शक्ति वापस लौटने में काफी समय लग जाता है।
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5. घरेलू अपशिष्ट- घरेलू अपशिष्ट पदार्थ जैसे- प्लास्टिक, सीसा, कागज आदि मृदा में मिलकर इसे दूषित करते हैं।
भूमि प्रदूषण का प्रभाव
1. पर्यावरण पर प्रभाव- इसका प्रभाव पेड़-पौधों पर पड़ता है। इससे आसपास कोई पेड़-पौधे जीवित नहीं रह पाते हैं। भूमि प्रदूषण अन्य प्रकार के प्रदूषणों का कारक है वायु एवं जल प्रदूषण में इसके द्वारा वृद्धि होती है। कूड़े करकट के सड़ने गलने से अनेक प्रकार की गैसें एवं दुर्गंध निकलती है,जो वातावरण को प्रदूषित करती है। अपशिष्ट पदार्थों को समुद्र में डालने से सामुद्रिक परिस्थितिक तंत्र में असंतुलन आ जाता है।
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2.मनुष्यों पर प्रभाव- मनुष्य के भोजन हेतु कृषि अनिवार्य है, लेकिन मृदा प्रदूषण से उस स्थान पर कृषि नहीं किया जा सकता है। मिट्टी में कूड़ा-करकट एवं गंदगी की अधिकता हो जाने से उनमें अनेक बीमारियों को फैलाने वाले जीवाणुओं का जन्म होता है, जिससे टी.वी., मलेरिया, हैजा, पेचिस, आंखों के रोग, आंत्रशोथ, यकृत रोग आदि बीमारियों का जन्म होता है।
भूमि प्रदूषण रोकने के उपाय
1. फसलों पर छिड़कने वाली विषैली दवाओं के प्रयोग पर प्रतिबंध।
2. गांव तथा नगरों में गंदगी को एकत्रित करने के उचित स्थान।
3. खेतों में पानी की उचित व्यवस्था।
4. कृत्रिम उर्वरकों के स्थान पर परंपरागत खाद का प्रयोग।
5. वनों के विनाश पर प्रतिबंध।
Hum apne aas-pass saf-safai jaroor rkhenge, aur bhumi ko pradhushit hone se bachayenge.
ReplyDeleteआप सब का अनोखा ज्ञान पे बहुत बहुत स्वागत है.