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प्रदूषण क्या है? (Pollution In Hindi) | इसके प्रभाव तथा उपाय - Anokhagyan.in

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प्रदूषण क्या है? प्रभाव तथा उपाय- Anokhagyan.in

                    प्रदूषण(pollution)

पर्यावरण में दूषक पदार्थों के प्रवेश के कारण प्राकृतिक संतुलन में पैदा होने वाले दोष को कहते है। प्रदूषण का अर्थ है-हवा,पानी,मिट्टी आदि का अवांछित द्रव्यों से दूषित होना। प्रदूषण एक ऐसा अभिशाप है,जो विज्ञान की गर्भ से जन्मा है। पर्यावरण प्रदूषण में मानव की विकास प्रक्रिया तथा आधुनिकता का महत्वपूर्ण योगदान है। मानव की वे सामान्य गतिविधियाँ भी प्रदूषण कहलाती है, जिनसे नकारात्मक फल मिलते हैं।

प्रकृति द्वारा निर्मित वस्तुओं के अवशेष को जब मानव निर्मित वस्तुओं के अवशेष के साथ मिला दिया जाता है तब दूषक पदार्थों का निर्माण होता हैं। आज हमारा वातावरण दूषित हो गया है। वाहनों तथा फैक्ट्रियों से निकलने वाले गैसों के कारण हवा (वायु) प्रदूषित है।

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मानव कृतियों से निकलने वाले कचड़े को नदियों में छोड़ा जाता है,जिससे जल प्रदूषण होता है। लोगों द्वारा बनाये गये अवशेषों को पृथक न करने के कारण बने  कचरे को फेंके जाने से भूमि(मृदा) प्रदूषण होता है।

समाज के शैशव काल में मानव तथा प्रकृति के मध्य एकात्मकता थी। मानव पूर्ण रुप से प्रकृति पर निर्भर था और अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति प्रकृति से करता था। लेकिन मानव सभ्यता का जैसे-जैसे विकास होता गया वह अपने आसपास के वातावरण को प्रदूषित करने में कोई कमी नहीं की।

प्रदूषण को निम्नलिखित भागों में बांटा गया है-

1. जल प्रदूषण:-

पानी में हानिकारक पदार्थों जैसे सूक्ष्मजीव,रसायन, औद्योगिक, घरेलू या व्यावसायिक प्रतिष्ठानों से उत्पन्न दूषित जल आदि के मिलने से जल प्रदूषित हो जाता है। इसे ही जल प्रदूषण कहते है।

जल प्रदूषण का मुख्य कारण मानव या जानवरों की जैविक या फिर औद्योगिक क्रियाओं के फलस्वरूप पैदा हुए प्रदूषकों को बिना किसी समुचित उपचार के सीधे जल धाराओं में विसर्जित कर दिया जाना है।

जल में हानिकारक पदार्थों के मिलने से जल के भौतिक, रसायनिक एवं जैविक गुणधर्म प्रभावित होते हैं। किसी तरल वायु या ठोस वस्तु का जल में विसर्जन जिससे उप ताप हो रहा हो  या होने की संभावना हो।

अन्य शब्दों में ऐसे जल को  नुकसानदेह तथा लोक स्वास्थ्य को या लोक सुरक्षा को या  घरेलू,व्यापारिक,औद्योगिक, कृषिय या अन्य वैद्यपूर्ण उपयोग को या पशु या पौधों के स्वास्थ्य तथा जीव जंतु को या जलीय जीवन को क्षतिग्रस्त करें, जल प्रदूषण कहलाता है।

पृथ्वी पर जितना जल है उसका केवल 0.3% भाग ही स्वच्छ एवं शुद्ध है। शेष समुद्रों में खारे जल के रूप में है।

जल की गुणवत्ता के मानक

जल एक रंगहीन द्रव  है जो हाइड्रोजन का मोनोऑक्साइड होता है। जल का सूत्र h2o है जल का घनत्व 4 डिग्री सेल्सियस पर अधिक होता है. हिमांक 0 डिग्री सेल्सियस तथा क्वथनांक 100 डिग्री सेल्सियस होता है।

पेयजल के निर्धारित मानक

1. रासायनिक मानक- WHO के अनुसार पेयजल का PH मान 7 से 8.5 के मध्य हो। जल के कुछ नमूने लेकर रसायनिक प्रक्रिया द्वारा यह ज्ञात किया जा सकता है कि उसमें कितनी अशुद्धता है।

2. भौतिक मानक- WHO के अनुसार पेयजल ऐसा होना चाहिए जो स्वच्छ,शीतल,स्वादयुक्त तथा गंध रहित हो।

प्रदूषण पर नियंत्रण

> जल प्रदूषण की रोकथाम हेतु सबसे आवश्यक बात यह है कि हमें जल प्रदूषण को बढ़ावा देनेवाली  प्रक्रियाओं पर ही रोक लगा देनी चाहिए।

> इसके तहत किसी भी अपशिष्ट को जल स्रोतों में मिलने नहीं दिया जाना चाहिए।

> नदी एवं तालाब में पशुओं को स्नान कराने पर भी पाबंदी होनी चाहिए।

> जल प्रदूषण पर नियंत्रण हेतु नालों की नियमित रूप से साफ-सफाई करनी चाहिए।

> कृषि कार्यों में आवश्यकता से अधिक उर्वरकों एवं कीटनाशकों के प्रयोग को भी कम किया जाना चाहिए।

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> समय-समय पर प्रदूषित जलाशयों में उपस्थित अनावश्यक जलीय पौधे एवं तल में एकत्रित कीचड़ को निकाल कर जल को स्वच्छ बनाएं रखने के लिए प्रयास किए जाने चाहिए।

> कई उद्योग वस्तु के निर्माण के बाद शेष बची सामग्री  जो किसी भी कार्य में न आती हो,उसे नदी आदि स्थानों में डाल देते हैं।

> जल प्रदूषण को रोकने हेतु उद्योगों द्वारा सभी प्रकार के शेष बची सामग्री को सही ढंग से नष्ट करना चाहिए।

> जनसाधारण के बीच जल प्रदूषण के कारकों,दुष्प्रभावों एवं रोकथाम की विधियों के बारे में जागरूकता बढ़ानी चाहिए।

2.वायु प्रदूषण(Air pollution)

वायु सभी मनुष्यों,जीवों तथा वनस्पतियों के लिए अत्यंत आवश्यक है। मनुष्य जल और भोजन के बिना जीवित कुछ दिनों के लिए रह सकता है,किंतु वायु के बिना नहीं।

मनुष्य प्रतिदिन 22000 बार सांस लेता है। वह 1 दिन में 16 किलोग्राम या 35 गैलन वायु ग्रहण करता है।

हमारे वायुमंडल में विभिन्न गैसों का मिश्रण है,जिसमें नाइट्रोजन,ऑक्सीजन,कार्बन डाइऑक्साइड,हाइड्रोजन,हिलियम,ऑर्गन,नियॉन,क्रिप्टान,जेनॉन,ओजोन आदि।

श्वसन के लिए ऑक्सीजन जरूरी है। जब कभी वायु में कार्बन डाइऑक्साइड नाइट्रोजन के ऑक्साइडों की वृद्धि हो जाती है,तो ऐसी वायु को प्रदूषित वायु तथा इस प्रदूषण को वायु प्रदूषण कहते हैं।

प्रदूषक

वायु में प्राकृतिक रूप से नहीं पाए जाने वाला तत्व या अधिक सांद्रता के साथ या सामान्य से अलग तत्वों को प्रदूषक कहा जाता है। प्रदूषक को दो भागों में बांटा गया है-

1. प्राथमिक प्रदूषक- वे तत्व जो सीधे एक प्रक्रिया से उत्सर्जित होते हैं,जैसे ज्वालामुखी विस्फोट से राख,कारखानों से निकलने वाली सल्फर डाइऑक्साइड।

2. द्वितीयक प्रदूषक- यह प्रदूषक सीधे उत्सर्जित नहीं होता है। बल्कि प्राथमिक प्रदूषक जब आपस में क्रिया या प्रतिक्रिया करते हैं तब वे वायु में बनते हैं।

वायु प्रदूषण कैसे होता है?

वायु प्रदूषण के कुछ सामान्य कारण- ज्वालामुखी विस्फोट,तेल शोधन कारखानों से निकलने वाला धुआं,औद्योगिक इकाइयों से निकलने वाला धुआं तथा रसायन,जंगलों में पेड़ पौधों के जलने से तथा वाहनों से निकलने वाला धुआं आदि।

वायु प्रदूषण के स्रोत

वायु प्रदूषण के स्रोतों को दो भागों में बांटा गया है-

1. प्राकृतिक स्रोत- आंधी तूफान के समय उड़ती धूल,पशुओं द्वारा भोजन के पाचन के कारण उत्सर्जित मिथेन,वनों में लगी आग से उत्पन्न धुआँ एवं कार्बन डाइऑक्साइड,पृथ्वी की पपड़ी नष्ट होने से रेडियोधर्मी    क्षय से उत्पन्न रेडॉन गैस,कवक से उत्पन्न जीवाणु एवं वायरस आदि,बैक्ट्रिया से मिमुर्क्त कार्बन डाइऑक्साइड।

2. मानवीय स्रोत- बिजली संयंत्रों की चिमनियाँ, सामान्य तेल शोधन तथा औद्योगिक गतिविधि,कृषि और वाणिकी  प्रबंधन में रसायन ,धूल उड़ने और नियंत्रित दहन की पद्धतियां,घरेलू कार्यों में दहन,वाहनों में दहन ताप विद्युत उर्जा हेतु दहन आदि।

क्या वायु प्रदूषण का कारण बनता है?

वाहनों तथा फैक्ट्रियों से निकलने वाली गैसों के कारण वायु प्रदूषित होती है।

वायु प्रदूषण कितने प्रकार के होते हैं?

वायु प्रदूषण के प्रकार- सल्फर डाइऑक्साइड, लौह-कण, कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड, हाइड्रोकार्बन आदि।

वायु प्रदूषण के प्राकृतिक स्रोत

ज्वालामुखी विस्फोट,दलदल,ऑक्सीकरण,जंगल कि  आगें,फूलों,बीजाणुओं के पराग कण आदि।

वायु प्रदूषण क्या है यह मानव जीवन को किस प्रकार प्रभावित करता है?

एक ऐसा प्रदूषण जिसके कारण मानव स्वास्थ्य रोज ब रोज खराब होता चला जा रहा है। WHO के अनुसार हर साल 2 से 4 लाख लोगों मौत का कारण सीधे-सीधे वायु प्रदूषण है।

दुनिया में हर साल मोटर गाड़ी से होने वाली मौतों की तुलना में वायु प्रदूषण से होने वाली मौतें अधिक है। वायु प्रदूषण के प्रत्यक्ष कारण से जुड़ी मौतों में शामिल है- अस्थमा,ब्रोंकाइटिस,वातस्फीति,फेफड़ों,हृदय रोग और सांस की एलर्जी।

वायु प्रदूषण को कैसे रोका जा सकता है?

धूम्रपान न सिर्फ स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है,बल्कि इसकी वजह से वायु भी प्रदूषित होती है। धूम्रपान ना करने से वायु प्रदूषण को कम करके पर्यावरण को बचाया जा सकता है।

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आज प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण वाहनों की बढ़ती जनसंख्या है। ऐसे में वायु प्रदूषण को रोकने के लिए वाहनों का सही से ख्याल रखें और साथ में समय-समय पर प्रदूषण की जांच करवाते रहे। पर्यावरण को बचाने के लिए अधिक से अधिक पेड़ पौधे लगाएं।

3.भूमि प्रदूषण या मृदा प्रदूषण

भूमि के भौतिकी रासायनिक या जैविक गुणों में ऐसा अवांछनीय परिवर्तन जिसका प्रभाव मानव जीवो या पेड़ पौधों पर पड़ती होता था जिससे भूमि की उपयोगिता नष्ट हो भूमि प्रदूषण कहलाता है।

भूमि प्रदूषण के कारण

1. भू-क्षरण- भू-क्षरण द्वारा कृषि क्षेत्र की ऊपरी सतह की मिट्टी कुछ ही वर्षों में समाप्त हो जाती है,जबकि 6 सेंटीमीटर गहरी मिट्टी की पर्त के निर्माण में 24 सौ वर्ष लगते हैं।

2. खनन- खनन से निकलने वाले मलबों को पास ही के किसी जगह में डाल दिया जाता है। वर्षा के समय यह मलबे जल के साथ मिलकर दूर दूर तक जाकर मृदा को प्रदूषित करता है।   

3. कीटनाशक और कृत्रिम उर्वरक के द्वारा प्रदूषण- कीटनाशक तथा रासायनिक खाद फसल उत्पादन वृद्धि में सहयोग देते हैं,लेकिन धीरे-धीरे भूमि में इसका जमाव बढ़ने लगता है,जिससे सूक्ष्म जीवों का विनाश होता है तथा मिट्टी की तापमान वृद्धि से भूमि की गुणवत्ता नष्ट होती है।

4. औद्योगिक अपशिष्ट- उद्योगों में रसायनिक या अन्य प्रकार के कचरे होते हैं,जिसे आसपास या दूर किसी स्थान पर डाल दिया जाता है। जिस स्थान पर यह कचरा डाला जाता है उस स्थान को अपनी उपजाऊ शक्ति वापस लौटने में काफी समय लग जाता है।

5. घरेलू अपशिष्ट- घरेलू अपशिष्ट पदार्थ जैसे- प्लास्टिक,सीसा,कागज आदि मृदा में मिलकर इसे दूषित करते हैं।


भूमि प्रदूषण का प्रभाव

1. पर्यावरण पर प्रभाव- इसका प्रभाव पेड़-पौधों पर पड़ता है। इससे आसपास कोई पेड़ पौधे जीवित नहीं रह पाते हैं। भूमि प्रदूषण अन्य प्रकार के प्रदूषणों का कारक है वायु एवं जल प्रदूषण में इसके द्वारा वृद्धि होती है। कूड़े करकट के सड़ने गलने से अनेक प्रकार की गैसें एवं दुर्गंध निकलती है,जो वातावरण को प्रदूषित करती है। अपशिष्ट पदार्थों को समुद्र में डालने से सामुद्रिक परिस्थितिक तंत्र में असंतुलन आ जाता है।

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भूमि प्रदूषण क्या है? | मृदा प्रदूषण को कैसे रोके?

2. मनुष्यों पर प्रभाव- मनुष्य के भोजन हेतु कृषि अनिवार्य है,लेकिन मृदा प्रदूषण से उस स्थान पर कृषि नहीं किया जा सकता है।
मिट्टी में कूड़ा करकट एवं गंदगी की अधिकता हो जाने से उनमें अनेक बीमारियों को फैलाने वाले जीवाणुओं का जन्म होता है,जिससे टी.वी.,मलेरिया,हैजा,पेचिस,आंखों के रोग,आंत्रशोथ,यकृत रोग आदि बीमारियों का जन्म होता है।

भूमि प्रदूषण रोकने के उपाय

फसलों पर छिड़कने वाली विषैली दवाओं के प्रयोग पर प्रतिबंध,गांव तथा नगरों में गंदगी को एकत्रित करने के उचित स्थान,खेतों में पानी की उचित व्यवस्था,कृत्रिम उर्वरकों के स्थान पर परंपरागत खाद का प्रयोग,वनों के विनाश पर प्रतिबंध।

4.ध्वनि प्रदूषण

ध्वनि प्रदूषण किसी भी प्रकार की अनुपयोगी ध्वनि को कहते हैं,जिससे मानव और जीव-जंतुओं को परेशानी होती है वायुमंडल में अवांछनीय की मौजूदगी को ही 'ध्वनि प्रदूषण' कहा जाता है।

ध्वनि प्रदूषण का कारण

1. प्राकृतिक स्त्रोत- बिजली की कड़क,बादलों की गड़गड़ाहट,तेज हवाएं,ऊंचे स्थान से गिरता जल,आंधी- तूफान,ज्वालामुखी का फटना एवं उच्च तीव्रता वाली जल वर्षा,कोलाहल आदि।

2. कृत्रिम स्रोत- यह मनुष्य के द्वारा निर्मित शोर प्रदूषण होता है इसके अंतर्गत मोटर वाहनों से होने वाला शोर,वायुयानों से होने वाला शोर,रेलगाड़ी की सीटी,लाउडस्पीकर एवं म्यूजिक सिस्टम,टेलीफोन की घंटी,मोटर,ट्रक,बसें आदि।

ध्वनि प्रदूषण के प्रभाव

ध्वनि प्रदूषण के प्रभावों को दो भागों में बांटा गया है- 

1. मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव- ध्वनि प्रदूषण मनुष्य के स्वास्थ्य को प्रभावित करता है,जिसके कारण रक्त धमनियों के संकुचन से शरीर पीला पड़ जाता है। ध्वनि पेशियों के संकुचन का कारण होता है। शोर के कारण हृदय,मस्तिष्क,किडनी एवं यकृत को क्षति होती है। ध्वनि प्रदूषण मानसिक एवं शारीरिक दृष्टि से रोगी बनाकर कार्य क्षमता को कम करता है। शोर तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करता है।                             

2. पर्यावरणीय प्रभाव- शोर का घातक प्रभाव वन्यजीवों एवं निर्जीव पदार्थों पर भी होता है। शोर पशुओं में तनाव पैदा करता है।

ध्वनि प्रदूषण रोकने के उपाय

1.ध्वनि अवरोधक वाहनों की गति पर प्रतिबंध।
2.सड़क के धरातल में परिवर्तन।                      
3.भारी वाहनों पर प्रतिबंध।                       
4.यातायात नियंत्रण का उपयोग जो ब्रेक और गति बढ़ाने को कम करें।  5.वायुयान,ट्रक,मोटरसाइकिल,स्कूटर,औद्योगिक मशीनों एवं इंजनों की शोर पर नियंत्रण।

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6.घरों में पुताई हल्के हरे या नीले रंग के द्वारा करने से यह रंग ध्वनि प्रदूषण को रोकने में सहायक है।
7.घरेलू सौर को कम करने के लिए टी.वी.,रेडियो आदि को धीमी आवाज में चलाना। उपरोक्त उपाय वास्तव में अधिक मात्रा में शोर प्रदूषण को कम कर सकते हैं और शोर प्रदूषण से होने वाली विसंगतियों से बचाव कर सकते हैं।

जागरूकता संबंधी भूमिका

इसका अर्थ लोगों को पर्यावरण प्रदूषण के कारण तथा परिणामों के संबंध में जागरूक बनाएं ताकि वे पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने की बजाय ऐच्छिक रूप से पर्यावरण की रक्षा कर सकें। प्रदूषण एक प्रमुख पर्यावरणीय मुद्दा बन गया है क्योंकि यह हर आयु वर्ग के लोगों और जानवरों के लिए स्वास्थ्य का खतरा है। पर्यावरण को दूषित होने से बचाने के लिए सार्वजनिक स्तर पर सामाजिक जागरूकता कार्यक्रम की आवश्यकता है।

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