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Kol Rebellion ! कोल विद्रोह से जुड़ी संपूर्ण जानकारी | Kol Vidroh Information In Hindi

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कोल विद्रोह 'कोल जनजाति' द्वारा ब्रिटिश शासन के अत्याचार के खिलाफ वर्ष 1831 में किया गया एक विद्रोह है। कोल विद्रोह (kol vidroh in hindi) भारत में अंग्रेजी शासन के खिलाफ किया गया एक महत्वपूर्ण विद्रोह है। 1831 में किया गया यह विद्रोह अंग्रेजों के शोषण का बदला लेने के लिए किया गया था।

कोल विद्रोह जिसे 'मुण्डा विद्रोह' के नाम से भी जाना जाता है। इस विद्रोह के तहत कोल जनजाति के लोगों ने ब्रिटिश साम्राज्य द्वारा किए गए शोषण का बदला लेने के लिए विद्रोह की चिंगारी को जलाया था। जो समय के साथ एक विशाल विद्रोह में बदल गया, जिसे कोल विद्रोह के नाम से जाना गया।

★ कोल कौन थे? 

कोल प्राचीनकाल में मध्य भारत (छोटा नागपुर) के जंगलों व पठार इलाकों के आस पास के गांव में निवास करने वाली विशाल जनजाति थी। इस जनजाति के लोगों की जीविका का मुख्य आधार खेती और जंगल थे।


ये लोग खेती-बाड़ी कर व्  पशुओं को पाल कर अपना जीवन यापन करते थे। कोल जनजाति के लोग जंगलों की सफाई कर बंजर जमीन को खेती लायक बनाकर उस पर खेती करते थे। इस जनजाति का मूल स्थान मध्य प्रदेश के रीवा जिले का कुराली क्षेत्र था।

मध्यकाल तक इस जनजाति का जीवन सीमित जरूरतों के साथ आसानी से निर्वाह हो रहा था। परंतु औपनिवेशक काल

● औपनिवेशक काल - भारत में अंग्रेजों के शासन काल को औपनिवेशिक या उपनिवेश काल कहा जाता है। यह काल सन् 1760 से 1947 ई. तक माना जाता है।

में कोल जनजाति की आर्थिक व् समाजिक स्थिति में उतर-चढ़ाव आया। औपनिवेशिक काल के दौरान ही कोल विद्रोह (kol vidroh about in hindi) की छोटी आवाजों ने बड़ा रूप धारण कर लिया था।

मुगल काल में बहुत से बाहरी व्यापारी और अन्य लोग आकर धीरे-धीरे इन आदिवासी इलाकों में बसने लगे। इन आदिवासी इलाकों में मुसलमान और सिक्ख व्यापारीयों का आगमन बड़ी संख्या में हुआ।


इन लोगों ने धीरे-धीरे उन जमीनों पर अपना अधिकार जमाना आरंभ किया, परंतु मुगल काल तक कोल जनजाति के सामाजिक व् आर्थिक जीवन पर इन परिवर्तन का कोई व्यापक असर नहीं पड़ा।

बंगाल में अंग्रेजी शासन की स्थापना के साथ ही कोल जनजाति के लोगों के आर्थिक जीवन में भी महत्वपूर्ण परिवर्तन आ गया। स्थाई बंदोबस्त के कारण इस कोल जनजाति के इस क्षेत्र में नए जमींदार एवं महाजन का एक सबल वर्ग सामने आया। इसके साथ ही इनके अन्य कर्मचारी भी आए।

इन सभी ने मिलकर इस कोल जाति के लोगों का शारीरिक एवं आर्थिक दोनों रूपों से शोषण आरंभ कर दिया। लगान की रकम अदा न करने पर उनके जमीनों को नीलाम करवा दिया जाता था।

इन बाहरी लोगों ने कोल जनजाति की बहू-बेटियों की इज्जत भी लूटनी आरंभ कर दी। कोल जनजाति के बेगारी भी करना पड़ता था एवं उनकी स्त्रियों को उन जमींदारों और महाजनों के घर काम करने के लिए भी बाध्य किया जाता था।

★ कोल विद्रोह क्यों हुआ व् इसकी शुरुआत कैसे हुई?

कोल जनजाति के लोग औपनिवेशिक काल में जमीदारों से जमीन लीज पर लेकर उन जमीनों पर खेती किया करते थे। वह उन जमीनों पर खेती के लिए ऋण साहूकारों से लेते थे। धीरे-धीरे कोलो पर ऋण का बोझ बढ़ता चला गया। समय पर जमीन का कर न देने पर जमींदारों द्वारा भी उनका खूब शोषण किया गया।


अब कोल जनजाति को इस विकट स्थिति से उभारने का एकमात्र सहारा ब्रिटिश सरकार थी। कोल जनजाति को भी ब्रिटिश सरकार पर पूरा-पूरा भरोसा था कि ब्रिटिश सरकार उनके हक के लिए सरकारी कदम जरूर उठाएगी। परंतु ब्रिटिश सरकार ने उनकी स्थिति को सुधारने की वजाय और बिगाड़ दिया..

कोल जनजाति पर ये अत्याचार बढ़ते गए। इन अत्याचारों से इनकी सुरक्षा करने वाला कोई नहीं था। थाना और न्यायालय भी जमींदारों एवं महाजनों का ही साथ देते थे। कोल जनजाति का मुखिया भी नि:सहाय था। इन सभी का जीवन एक अभिशाप जैसा बन गया था। धीरे-धीरे कोलो का आक्रोश जमींदार, महाजन व् पुलिस के विरुद्ध बढ़त गया।

ईस्ट इंडिया कंपनी ने कोलो की भूमि को गैर आदिवासी लोगों को दे दिया। अतः उन पर जमींदारों, महाजनों और सूदखोरों का अत्याचार दिन प्रतिदिन बढ़ने लगा। अतः वर्ष 1831 में गैर आदिवासी जाति के लोगों के विरुद्ध कोल जनजाति ने विद्रोह कर दिया।

कोल जनजाति के लोगों के इस विद्रोह का नेतृत्व बुधु भगत, जोआ भगत और मदारा महतो ने किया। कोल जनजाति के लोगों ने गैर आदिवासी जमींदारों, महाजनों और सूदखोरों की संपत्ति को नष्ट कर दिया।


उसके बाद कोलो ने सरकारी खजाने को लुटा और कचहरियों और थानों पर आक्रमण किया। अंत में ब्रिटिश सरकार ने स्थिति की गंभीरता को देखते हुए सेना की एक विशाल टुकड़ी भेजी जिसके बाद बड़ी निर्दयता से कोलो के इस विद्रोह को दबा दिया गया। इस विद्रोह में बड़ी संख्या में कोल जनजाति के लोग मारे गए। कोल जनजाति के लोग अपने पारंपरिक हथियारों से अंग्रेजों की सेना का सामना करने में असमर्थ रहे।

★ कोल विद्रोह का पतन?

कोल जनजाति द्वारा किये गए इस विद्रोह (Kol Rebellion in hindi) की छोटी सी चिंगारी देखते ही देखते एक विशाल विद्रोह में बदल गई व् कई और जनजातियों ने इस विद्रोह में साथ देना शुरू कर दिया। कोल जनजाति के लोगों द्वारा सरकारी संपत्ति, भवन इत्यादि को कब्जे में लिया जाने लगा और अंग्रेज अफसरों को भी अपने इलाके से खदेड़ा जाने लगा।

परिणाम स्वरूप ब्रिटिश सरकार इस विद्रोह से बेहद डर चुकी थी और उसने इस विद्रोह को कुचलने की योजना बनाई। अतः ब्रिटिश सरकार ने सेना के द्वारा इस विद्रोह की ताकत को कम करने की योजना तैयार की और अंग्रेजी सेना कोलों द्वारा छेड़े गए इस विद्रोह को कुचलने में कामयाब रही।

★ कोल विद्रोह निष्कर्ष?

पूर्वी भारत (indian history in hindi) में शोषण के विरुद्ध कोल जनजाति ने पहली बार संगठित रूप से सरकार और उसके समर्थकों के विरुद्ध सशस्त्र आंदोलन आरंभ किया। कोल जनजाति के लोगों ने जो रास्ता अपनाया। वह अन्य आदिवासियों के लिए एक प्रेरणा का स्रोत बन गया।


शीघ्र ही इस क्षेत्रों में संथालों का व्यापक आंदोलन आरंभ हुआ। कोल विद्रोह भले ही असफल हो गया हो लेकिन कोल जनजाति के लोगों का बलिदान व्यर्थ नहीं गया। असमानता और शोषण के विरूद्ध ये संघर्ष विद्रोह के बाद भी जारी रहा।

कोल विद्रोह (Kol Rebellion) की समाप्ति के पश्चात ब्रिटिश सरकार को कोल जनजाति के सुधार के लिए मजबूर होना पड़ा और कोलों की स्थिति को सुधारने के लिए उन्हें सरकारी कदम उठाने पड़े।

ब्रिटिश सरकार द्वारा वर्ष 1833 में बंगाल अधिनियम पारित किया गया। इस अधिनियम के अनुसार छोटा नागपुर क्षेत्र को विनियमन मुक्त क्षेत्र घोषित कर दिया गया। इस विनियमन कानून को गवर्नर जनरल के एक एजेंट के अधीन रखा गया ताकि इस क्षेत्र की गतिविधियों पर ठीक से नजर रखी जा सके।

इसके बाद वर्ष 1837 में कोल राज्य की स्थापना कर दी गई और इस प्रकार कोल जनजाति द्वारा आरंभ किये गए कोल विद्रोह भारत का ब्रिटिश सरकार के खिलाफ किया गया एक सफल विद्रोह कहलाया।


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