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भीष्म | भीष्म पितामह | भीष्म पितामह से जुड़े कुछ रोचक तथ्य

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महाभारत एक ऐसा ग्रंथ है, जिसमें कई नायक और कई महानायक हैं। उनमें से एक महानायक देवव्रत भीष्म भी हैं। सभी लोग जानते हैं कि भीष्म पितामह ने महाभारत की लड़ाई में कौरवों की पक्ष से युद्ध किया था, लेकिन बहुत से लोग उनके जीवन से जुड़ी बड़ी घटनाओं के बारे में नहीं जानते है जैसे- भीष्म पितामह पिछले जन्म में कौन थे?, किसके श्राप के कारण उन्हें मनुष्य योनि में जन्म लेना पड़ा?, भीष्म पितामह के गुरु कौन थे? और उन्हें क्यों भीष्म पितामह को अपने ही गुरु से युद्ध करना पड़ा? आज हम आप सब को इस आर्टिकल में भीष्म पितामह के पूर्वजन्म से लेकर उनकी मृत्यु तक की सम्पूर्ण कथा बताएँगे।

1. भीष्म पितामह कौन थे?

> भीष्म हस्तिनापुर के महाराजा शान्तनु और देवी गंगा की आठवीं संतान थे। उनका मूल नाम देवव्रत था। भीष्म पितामह महाभारत के सबसे महत्वपूर्ण पात्रों में से एक थे।

2. गंगापुत्र भीष्म का जन्म कैसे हुआ?

> गंगा पुत्र भीष्म का जन्म शांतनु और गंगा के मिलन से हुआ था। भीष्म पितामह का जन्म देवी गंगा के गर्भ से हुआ। 

3. भीष्म पितामह गंगा पुत्र कैसे कहलाए?

> देवी गंगा के गर्भ से जन्म होने के कारण देवव्रत भीष्म गंगा पुत्र कहलाए। जब महाराज प्रतीप को पुत्र की प्राप्ति हुई तो उन्होंने उसका नाम शांतनु रखा और महाराज शांतनु से गंगा का विवाह हुआ। गंगा से उन्हें 8 पुत्र मिले जिसमें से 7 को गंगा नदी में बहा दिया गया और 8वें पुत्र को पाला-पोसा। उनके 8वें पुत्र का नाम देवव्रत था। यह देवव्रत ही आगे चलकर भीष्म कहलाए।

4. भीष्म पितामह का बचपन का नाम क्या था?

> भीष्म के बचपन का नाम देवव्रत था।

5. भीष्म पितामह की शिक्षा-दीक्षा किससे प्राप्त हुई?

> भीष्म पितामह ने वेदशास्त्र की शिक्षा गुरु वशिष्ठ से प्राप्त की थी। युद्ध व शस्त्र विद्या की शिक्षा इन्हें भगवान परशुराम से मिली थी। भीष्म पितामह शस्त्र और शास्त्र दोनों विद्या में अत्यंत निपुण थे।

6. भीष्म पितामह के पिता कौन थे?

> महाराज शांतनु जो हस्तिनापुर के राजा थे।

7. देवव्रत ने विवाह न करने की प्रतिज्ञा क्यों की थी?

> क्योंकि देवव्रत के पिता महाराज शांतनु को केवट कि कन्या सत्यवती से प्रेम हो गया था। महाराज शांतनु ने जब सत्यवती के पिता से बात की तो उन्होंने कहा कि वह उनका विवाह सत्यवती से तभी संभव है जब सत्यवती के गर्भ से उतपन्न होने वाला बच्चा हस्तिनापुर की राजगद्दी पर बैठेगा। यह सुनकर महाराज शांतनु काफी परेशान हो गए क्योंकि उन्होंने राज्य का उत्तराधिकारी अपने बेटे देवव्रत को बनाया था।


जब देवव्रत को महाराज शांतनु और देवी सत्यवती के बारे में पता चला तो उन्होंने केवट के पास जाकर महाराज शांतनु और देवी सत्यवती की शादी की बात की। केवट बात न मानने पर देवव्रत ने प्रतिज्ञा की वह आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करूँगा और कभी अपना परिवार निर्मित नही करूँगा। इसी कारण देवव्रत ने विवाह नही की।

8. देवव्रत का नाम भीष्म कैसे पड़ा?

> जब देवव्रत को महाराज शांतनु और देवी सत्यवती के बारे में पता चला तो उन्होंने केवट के पास जाकर महाराज शांतनु और देवी सत्यवती की शादी की बात की। केवट बात न मानने पर देवव्रत ने प्रतिज्ञा की वह आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करूँगा और कभी अपना परिवार निर्मित नही करूँगा ऐसी भीष्म प्रतिज्ञा लेते ही भविष्यवाणी हुई कि देवव्रत तुम्हारे जैसा न कभी कोई धरती पर जन्म लिया है और न आगे कभी जन्म लेगा। और ऐसी भीष्म प्रतिज्ञा लेने के कारण ही उनका नाम भीष्म पड़ा।

9. गंगा पुत्र भीष्म के गुरु कौन थे?

> भगवान परशुराम

10. शांतनु कितने भाई थे?

> महाराज शांतनु दो भाई थे। बाह्लीका, देवापि

11. भीष्म कितने भाई थे?

>  भीष्म के दो भाई थे- चित्रांगद और विचित्रवीर्य।

12. पितामह भीष्म महाभारत युद्ध में पांडवों के विरुद्ध कुल कितने दिन तक लड़े थे?

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13. भीष्म पितामह ने शिखंडी के साथ युद्ध क्यों नहीं किया?

> दुर्योधन के बार-बार पूछे जाने पर भीष्म पितामह ने दुर्योधन से कहा कि शिखंडी पूर्व जन्म में एक स्त्री था।  भीष्म ने कहा कि कन्या रूप में जन्म लेने के कारण मैं उसके साथ युद्ध नहीं करूंगा। क्योंकि उनका धर्म महिलाओं पर शस्त्र उठाने की आज्ञा नहीं देता है।

14. महामहिम भीष्म की मृत्यु का कारण कौन था?

> महाभारत का एक पात्र थे शिखंडी जो स्त्री रूप में जन्में थे, लेकिन दैवीय चमत्कार के कारण द्रुपद ने उनका पालन पुरुष के रूप में किया। और यही शिखंडी महाभारत युद्ध में भीष्म पितामह की मृत्यु का कारण बने। 


यही कारण है अर्जुन बृहन्नला रूप में विराट राजा की पुत्री उत्तरा और उनकी सहेलियों को गायन-वादन और नृत्य सीखाते थे।

15. भीष्म पितामह बाणों की शैया पर कितने दिन रहे?

> 58 दिन बाणों की शैया पर बिताने के बाद मकर संक्राति को भीष्म पितामह ने त्यागे थे प्राण, इच्छा मृत्यु का वरदान था प्राप्त।

16. भीष्म पितामह को किसका श्राप लगा था?

> ऋषि वशिष्ठ के श्राप के प्रभाव से वे लंबे समय तक पृथ्वी पर रहे तथा अंत में इच्छामृत्यु से प्राण त्यागे।

17. भीष्म पितामह पूर्व जन्म में कौन थे?

> शास्‍त्रों के अनुसार 8 वसु थे। एक दिन सभी 8 वसु वशिष्‍ट ऋषि के आश्रम में गए। भीष्‍म पितामह भी अपने पूर्व जन्‍म में उन 8 वसुओं में से एक थे। उस जन्‍म में उनका नाम द्यो वसु था।

भीष्म पितामह से जुड़े कुछ तथ्य

1. भीष्म पितामह को इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त था इसलिए उन्होने स्वंय ही अपने प्राणों का सूर्य उत्तरायण (मकर संक्राति) के दिन त्याग किया।

2. जिस समय महाभारत का युद्ध चला, कहते हैं उस समय अर्जुन की उम्र 55 वर्ष, भगवान कृष्ण की उम्र 83 वर्ष और महामहिम भीष्म पितामह की उम्र 177 वर्ष के लगभग थी।

3. भीष्म पितामह को इच्छा मृत्यु का वरदान स्वयं उन्हीं के पिता महाराज शांतनु द्वारा दिया गया था। क्योंकि अपने पिता की इच्छा को पूरा करने के लिए भीष्म पितामह ने अखंड ब्रह्मचार्य की प्रतिज्ञा ली थी।


4. कहते हैं कि देवव्रत भीष्म के पिता महाराज शांतनु एक कन्या से विवाह करना चाहते थे, उस कन्या का नाम सत्यवती था। लेकिन सत्यवती के पिता ने राजा शांतनु से अपनी पुत्री का विवाह तभी करने की शर्त रखी, जब सत्यवती के गर्भ से उत्पन्न होने वाले बच्चे को ही वे अपने राज्य का उत्तराधिकारी घोषित करेंगे।

5. महाराज शांतनु इस बात को स्वीकार नहीं कर सकते थे, क्योंकि उन्होंने तो पहले ही देवव्रत (भीष्म) को उत्तराधिकारी घोषित कर दिया था।

6. देवी सत्यवती के पिता की बात को अस्वीकार करने के बाद महाराज शांतनु सत्यवती के वियोग में रहने लगे। देवव्रत (भीष्म) को अपने पिता की चिंता की जानकारी हुई तो उन्होने तुरंत अजीवन ब्रह्चर्य रहने की प्रतिज्ञा ली।


7. देवव्रत (भीष्म) ने सत्यवती के पिता से उनका हाथ राजा शांतनु को देने को कहा और स्वयं के आजीवन अविवहित रहने का बात कही, जिससे उनकी कोई संतान राज्य पर अपना हक ना जता सके।

8. इसके बाद देवव्रत (भीष्म) ने सत्यवती को अपने पिता महाराज शांतनु को सौंपा। राजा शांतनु अपने पुत्र की पितृभक्ति से प्रसन्न हुए और उन्हे इच्छा मृत्यु का वरदान दिया। और उसी वक़्त से वो भीष्म के नाम से प्रख्यात हुए।


9. धार्मिक मान्यताओं के हिसाब से ऐसा कहा जाता है कि भीष्म पितामह ने सूर्य उत्तरायण (मकर संक्राति) के दिन 58 दिनों तक बाणों की शैया पर रहने के बाद अपने वरदान स्वरूप इच्छा मृत्यु प्राप्त की ।

10. सूर्य उत्तरायण के दिन मृत्यु को प्राप्त होने से व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है और इस दिन भगवान की पूजा का विशेष महत्व है।

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2 Comments
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आप सब का अनोखा ज्ञान पे बहुत बहुत स्वागत है.