हिंदू धर्म में वसंत पंचमी का एक विशेष महत्व है। वसंत पंचमी के दिन ऐसी मान्यता है कि इस दिन मां सरस्वती का जन्म हुआ था। इस दिन (वसंत पंचमी) मां सरस्वती की पूजा के साथ पवित्र गंगा नदी में स्नान का भी महत्व है।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, वसंत पंचमी के दिन माँ सरस्वती की पूजा करने से तथा पवित्र गंगा नदी में स्नान करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है। वसंत पंचमी के दिन अबूझ मुहूर्त होता है। मतलब इस दिन बिना मुहूर्त निकाले विवाह, सगाई और निर्माण जैसे शुभ कार्य किए जाते हैं।
ऐसा कहा जाता हैं कि अगर किसी व्यक्ति की कुंडली में विद्या, बुद्धि का योग नहीं है या उस व्यक्ति के शिक्षा में बाधा आ रही है तो वसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती की पूजा करके उसे ठीक किया जा सकता है।
★ मां सरस्वती के अन्य नाम
मां सरस्वती को शारदा, वागीश्वरी, भगवती, वीणावादनी और वाग्देवी सहित अनेक नामों से पूजा जाता है।
★ संगीत की देवी
संगीत की उत्पत्ति करने के कारण मां सरस्वती को संगीत की देवी भी कहा जाता हैं।
★ वसंत पंचमी का ऐतिहासिक महत्व
वसंत पंचमी इस दिन का ऐतिहासिक महत्व इस लिए है कि यह दिन हमें पृथ्वीराज चौहान की भी याद दिलाता है। पृथ्वीराज चौहान जिन्होंने विदेशी हमलावर मोहम्मद ग़ोरी को 16 बार पराजित किया और प्रत्येक बार अपनी उदारता दिखाते हुए उसे जीवित छोड़ दिया, पर जब सत्रहवीं बार जब पृथ्वीराज स्वयं पराजित हुए, तो मोहम्मद ग़ोरी ने उन्हें नहीं छोड़ा।
मोहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज चौहान को अपने साथ अफगानिस्तान ले गया और वहां ले जाने के बाद उसने पृथ्वीराज की आंखें फोड़ दीं।
मोहम्मद ग़ोरी ने पृथ्वीराज चौहान को मृत्युदंड देने से पूर्व उनके शब्दभेदी बाण का कमाल देखने की इच्छा जाहिर की। कवि चंदबरदाई (पृथ्वीराज चौहान के साथी) के परामर्श पर मोहम्मद ग़ोरी ने ऊंचे स्थान पर बैठकर तवे पर चोट मारकर संकेत किया। तभी कवि चंदबरदाई ने पृथ्वीराज चौहान को संदेश दिया।
चार बांस चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण।ता ऊपर सुल्तान है, मत चूको चौहान ॥
पृथ्वीराज चौहान ने इस बार गलती नहीं की। उन्होंने तवे पर हुई मोहम्मद गौरी के पांव की चोट और अपने साथी कवि चंदबरदाई के संकेत से अनुमान लगाकर जो बाण मारा, वह बाण सीधा मोहम्मद ग़ोरी के सीने में जा धंसा। इसके बाद पृथ्वीराज चौहान और उनके साथी कवि चंदबरदाई ने भी एक दूसरे के पेट में छुरा भौंककर आत्मबलिदान दे दिया। यह घटना वर्ष 1192 की है और यह घटना भी वसंत पंचमी वाले दिन ही हुई थी।
★ पौराणिक महत्व
इतिहास के इन घटनाओं के साथ ही यह वसंत पंचमी का पर्व हमें अतीत की अनेक प्रेरक घटनाओं को भी याद दिलाता है। सबसे पहले तो यह हमें त्रेता युग से जोड़ती है। लंकापति रावण द्वारा माता सीता के हरण के बाद भगवान श्रीराम उनकी खोज में दक्षिण दिशा की ओर बढ़े। इस दक्षिण दिशा के क्रम में भगवान श्रीराम जिन स्थानों पर गये, उन स्थानों में दण्डकारण्य भी था। इसी दण्डकारण्य में शबरी नामक भीलनी रहती थी।
जब भगवान श्रीराम उसकी कुटिया में पधारे, तो शबरी अपना सुध-बुध खो बैठी और चख-चखकर मीठे बेर भगवान श्रीराम को खिलाने लगी। जिस दिन भगवान श्रीराम इस कुटिया में पधारे थे वो वसंत पंचमी वाला ही दिन था।
दंडकारण्य का वह क्षेत्र जहां भगवान श्रीराम पधारे हुए थे वो क्षेत्र अब गुजरात और मध्य प्रदेश में फैला है। डांग जिले (गुजरात) में वह स्थान है जहां शबरी मां का आश्रम था। उस क्षेत्र के वनवासी आज भी वहां एक शिला को पूजते हैं, जिसके बारे में उनलोगों की श्रद्धा है कि भगवान श्रीराम आकर यहीं बैठे थे। वहां शबरी माता का एक मंदिर भी है।
★ वसंत पंचमी का महत्व
इस पर्व का एक ये भी महत्व है कि वसंत ऋतु आते ही प्रकृति का कण-कण खिल उठता है। वसंत ऋतु के शुरू होते ही मानव तो क्या पशु-पक्षी तक उल्लास से भर जाते हैं। वसंत ऋतु के हर दिन नयी उमंग से सूर्योदय होता है और लोगों के अंदर नयी चेतना प्रदान कर अगले दिन फिर आने का आश्वासन देकर चला जाता है।
यूं तो माघ का यह पूरा महीना ही उत्साह देने वाला है, पर वसंत पंचमी का पर्व भारतीय जनजीवन को अनेक तरह से प्रभावित करता है।
प्राचीनकाल से इसे मां सरस्वती का जन्मदिवस माना जाता है। जो शिक्षाविद भारत और भारतीयता से प्रेम करते हैं, वो वसंत पंचमी वाले दिन मां सरस्वती की पूजा कर उनसे और अधिक ज्ञानवान होने की प्रार्थना करते हैं।
इस साल वसंत पंचमी यानी सरस्वती पूजा मंगलवार के दिन यानी 16 फरवरी 2021 को है। ऐसा कहते हैं कि बसंत पंचमी के दिन कुछ बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए।
बसंत पंचमी यानी मां सरस्वती की पूजा के दिन इन बातों का खास ध्यान रखें-
> बसंत पंचमी (सरस्वती पूजा) के दिन पीले या सफेद रंग के वस्त्र (कपड़े) पहनने चाहिए।
> वसंत पंचमी के दिन काले या लाल रंग के वस्त्र न पहनें।
> इस दिन मां सरस्वती की पूजा पूरब या उत्तर दिशा की ओर मुख करके शुरू करनी चाहिए।
> वसंत पंचमी के दिन माता सरस्वती की पूजा सूर्योदय के बाद ढाई घंटे करनी चाहिए या सूर्यास्त के बाद के ढाई घंटे में करनी चाहिए।
> इस दिन (वसंत पंचमी) पूजा के दौरान मां सरस्वती को पीले या सफेद रंग के फुल जरूर अर्पित करने चाहिए।
> मां सरस्वती की पूजा में प्रसाद के तौर पर दही, लावा तथा मिसरी आदि का प्रयोग करना चाहिए। इस दिन लड़ाई-झगड़े तथा वाद-विवाद से बचना चाहिए।
Achha hey
ReplyDeletehi bro aap kon sa template use karte hai
ReplyDeleteplease replay
Deletekya baat hai bhai
DeleteBahut hi achha
ReplyDeleteNice
ReplyDeleteAchchi design hai
ReplyDeleteआप सब का अनोखा ज्ञान पे बहुत बहुत स्वागत है.