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सरदार पटेल एक लौह पुरुष | Sardar Patel About In Hindi

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सरदार बल्लभ भाई पटेल जी ने 15 दिसंबर 1950 को अंतिम सांस ली। दुनिया की सबसे ऊंची प्रतिमा 'स्टैच्यू ऑफ यूनिटी' आज हमें उनके विशाल वैचारिक कद की याद दिलाती है। आइए जानते हैं उनकी जिंदगी के कुछ अहम हिस्सों के बारे में।

★ कठिन था बचपन

सरदार बल्लभ भाई पटेल का प्रारंभिक जीवन काफी कठिन था। वह एक गरीब किसान परिवार से ताल्लुक रखते थे और खेतों में अपने पिता का हाथ बंटाते थे। इसी वजह से 22 साल की उम्र में ही उन्होंने 10वीं की परीक्षा पास कर ली। उन्हें घर पर ही कॉलेज की पढ़ाई भी करनी थी।

★ धैर्य का जवाब नहीं

साल 1909 में जब उनकी पत्नी की मृत्यु हो गई तो वे अदालत में बहस कर रहे थे। साथ ही, उन्होंने एक कागज के टुकड़े पर लिखकर उन्हें यह दुखद समाचार दिया। उसने उसे पढ़कर अपनी जेब में रख लिया। कार्यवाही समाप्त होने के बाद, उन्होंने सभी को इस बारे में बताया और चले गए।


★ सेवा की भावना

1930 के दशक में जब गुजरात में प्लेग फैला, तो पटेल ने लोगों की सलाह को नज़रअंदाज़ करते हुए अपने पीड़ित दोस्त की देखभाल के लिए हाथ बढ़ाया। नतीजतन वह भी इस बीमारी की चपेट में आ गया। ठीक होने तक वह एक पुराने मंदिर में अकेला रहा।

★ गांधीजी से गहरा लगाव

सरदार पटेल को महात्मा गांधी से बहुत लगाव था। गांधीजी की हत्या की खबर सुनकर वे स्तब्ध रह गए और बीमार हो गए। इसके बाद उनकी हार्ट अटैक से मौत हो गई।

★ आरएसएस पर प्रतिबंध

महात्मा गांधी की हत्या के बाद अल्पसंख्यक समुदाय के खिलाफ हत्या में कथित संलिप्तता के आरोपों के कारण पटेल ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को गृह मंत्री के रूप में प्रतिबंधित कर दिया था।

★ कुशाग्र बुद्धि

36 साल की उम्र में वे कानून की पढ़ाई के लिए इंग्लैंड चले गए और 36 महीने का कोर्स महज 30 महीने में पूरा कर लिया।

★ बलिदान की भावना

पंडित जवाहरलाल नेहरू के प्रति महात्मा गांधी के प्रेम के बावजूद, 1946 में किसी भी कांग्रेस कमेटी ने नेहरू के नाम का प्रस्ताव नहीं रखा। दूसरी ओर, सरदार पटेल के नाम को पूर्ण बहुमत के साथ प्रस्तावित किया गया था।  नेहरू ने स्पष्ट कर दिया कि वह किसी के अधीन काम नहीं करेंगे।

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गांधीजी को लगा कि नेहरू को कांग्रेस नहीं तोड़नी चाहिए, इससे अंग्रेजों को भारत को आजाद न करने का बहाना मिल सकता है। सरदार पटेल के मन में गांधीजी के प्रति बहुत सम्मान था, इसलिए उन्होंने अपना नामांकन वापस ले लिया।

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