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पर्यावरण क्या हैं? संरक्षण तथा उनके महत्व - Anokhagyan.in

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पर्यावरण क्या हैं? संरक्षण तथा उनके महत्व-Anokhagyan.in

पर्यावरण (Environment)

हमारे चारों और घिरे हुए आवरण को पर्यावरण कहते हैं। पर्यावरण शब्द का निर्माण दो शब्दों से मिलकर हुआ है। "परि" जो हमारे चारों ओर है "आवरण" जो हमें चारों ओर से घेरे हुए हैं।

इस शब्द की उत्पत्ति फ्रेंच शब्द Environ  से हुई है,जिसका अर्थ है- आवृत या घिरा हुआ।

पर्यावरण जैविक तथा अजैविक अवयवों का सम्मिश्रण है,जो जीवों को अनेक प्रकार से प्रभावित करता है।

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पर्यावरण के जैविक संघटकों में सूक्ष्म जीवाणु से लेकर कीड़े-मकोड़े,सभी जीव जंतु और पेड़-पौधे आ जाते हैं।

अजैविक संघ घटकों में जीवन रहित तत्व और उनसे जुड़ी प्रक्रियाएँ आती है,जैसे चट्टान, पर्वत, हवा, नदी, जलवायु के तत्व इत्यादि। कुछ विद्वानों ने पर्यावरण को मिल्यू से भी संबोधित किया है,जिसका अर्थ चारों और के वातावरण का समूह होता है।

पर्यावरण की प्रमुख विशेषताएं

पर्यावरण की प्रमुख विशेषताएं निम्न है- 

जैविक एवं अजैविक तत्वों के योग को पर्यावरण कहते हैं। पर्यावरण अपने जैविक पदार्थों का उत्पादन करता है। पर्यावरण में समय तथा स्थान के साथ परिवर्तन होता रहता है। पर्यावरण एक बंद तंत्र है। पर्यावरण की कार्यात्मकता ऊर्जा संचार पर निर्भर करती है।

नमोतप्ति

पर्यावरण शब्द की उत्पत्ति फ्रेंच शब्द Environ से हुआ है। जिसका मतलब है आवृत या घिरा हुआ। लेकिन इससे पहले पर्यावरण शब्द संस्कृत भाषा के 'परी' और 'आवरण' से मिलकर बना है जिसका अर्थ है ऐसी चीजों का समूह या समुच्चय जो किसी व्यक्ति या जीवधारी को चारों ओर से घेरे हुए हैं।

पर्यावरण के प्रकार

पर्यावरण को 3 वर्गों में बांटा गया है-

1. प्राकृतिक पर्यावरण- वे सारे तत्व जो पृथ्वी पर प्राकृतिक रूप में पाए जाते हैं प्राकृतिक पर्यावरण कहलाते हैं। प्राकृतिक पर्यावरण को भी दो भागों में बांटा गया है- 

जैविक तत्व- सूक्ष्मजीव पौधे एवं जंतू शामिल है।

अजैविक तत्व- ऊर्जा उत्सर्जन तापमान जल उष्मा प्रभाव वायुमंडलीय गैसें,वायु, गुरुत्वाकर्षण एवं मृदा आदि।

2. मानव निर्मित पर्यावरण- वे पर्यावरण जिसे मानव ने Artificial रूप से निर्मित किया है,मानव निर्मित पर्यावरण कहलाता है। इस पर्यावरण के अंतर्गत वायु पतन,अंतरिक्ष स्टेशन,कृषि क्षेत्र,औद्योगिक शहर आदि।

3. सामाजिक पर्यावरण- वे पर्यावरण जिसके अंतर्गत सांस्कृतिक मूल्य एवं मान्यताओं को सम्मिलित किया जाता है। राजनीतिक धार्मिक संस्थाएं या संगठन यह सामाजिक पर्यावरण का हिस्सा है तथा हिस्सा होने के साथ-साथ यह निर्धारित करते हैं कि पर्यावरणीय संसाधनों का उपयोग कैसे किया जाए तथा कैसे उसका लाभ उठाया जाए।

पर्यावरण का ज्ञान

पर्यावरण का सीधा संबंध प्रकृति से है। अपने परिवेश में हम तरह-तरह के जीव-जंतु, पेड़-पौधे तथा अन्य सजीव निर्जीव वस्तुएं पाते हैं। यह सब मिलकर पर्यावरण की रचना करते हैं।

विज्ञान की विभिन्न शाखाओं जैसे- भौतिक विज्ञान, रसायन विज्ञान तथा जीव विज्ञान आदि में विषय के मौलिक सिद्धांतों तथा उनसे संबंधित प्रायोगिक विषयों का अध्ययन किया जाता है।

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आधुनिक समाज को पर्यावरण से संबंधित समस्याओं की शिक्षा व्यापक स्तर पर दी जानी चाहिए। प्रदूषण एक अभिशाप के रूप में संपूर्ण पर्यावरण को नष्ट करने के लिए हमारे सामने खड़ा है। संपूर्ण विश्व एक गंभीर चुनौती के दौर से गुजर रहा है। ऐसी विषम परिस्थिति में समाज को उसके कर्तव्य तथा दायित्व का एहसास होना अनिवार्य है।

वास्तव में सजीव तथा निर्जीव दो संघटक मिलकर प्रकृति का निर्माण करते हैं। वायु,जल तथा भूमि निर्जीव घटकों में आते हैं जबकि जंतु जगत पादप जगत से मिलकर सजीवों का निर्माण होता है।

शिक्षार्थियों को प्रकृति तथा पारिस्थिक ज्ञान सीधी तथा सरल भाषा में समझनी चाहिए। शिक्षा के क्षेत्र में पर्यावरण का ज्ञान मानवीय सुरक्षा के लिए आवश्यक है।

पर्यावरण की संरचना

पर्यावरण की संरचना 4 वर्गों में किया गया है-

1. स्थलमंडल- भूगोल और भूविज्ञान में किसी पथरीले ग्रह या प्राकृतिक उपग्रह की सबसे ऊपरी पथरीली या चट्टान निर्मित परत को कहते है।
पृथ्वी पर इसमें क्रस्ट और मेंटल के ऊपरी परत शामिल हैं जो कई टुकड़ों में विभक्त है और इन टुकड़ों को प्लेट कहा जाता है। स्थलमंडल भूपृष्ठ पर पाए जाने वाले ठोस शैल पदार्थों की परतें हैं। इसका निर्माण तत्वों, खनिजों, शैलों तथा मिट्टी से हुआ है।

तत्वों के अंतर्गत:- लोहा, तांबा, निकल, सोना, चांदी, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन, नाइट्रोजन, कार्बन आदि आते हैं।

खनिजों के अंतर्गत:- डोलोमाइट, हेमेटाइट, बॉक्साइट, फेल्सपार आदि।

शैलों के अंतर्गत:- आग्नेय, अवसादी तथा रूपांतरित शैल आते हैं।

मिट्टी के अंतर्गत:- जलोढ़, दोमट, लैटेराइट आदि शामिल है। पृथ्वी का लगभग 29% भाग स्थलमंडल है। इसके 2 भाग है शैल तथा मृदा

शैल स्थलमंडल- शैल स्थलमण्डल का संगठित एवं प्रायः कठोर भाग है।

मृदा- इसका निर्माण तब होता है जब शैलों का अपने स्थान से अपक्षयन होता है। इसका निर्माण मूल शैल,जलवायु,सजीवों,समय तथा स्थलाकृतियों के मध्य पारस्परिक क्रियाओं द्वारा होता हैं।

2. जलमंडल- यह पर्यावरण का सबसे महत्वपूर्ण घटक है। पृथ्वी के धरातल के लगभग 70 फ़ीसदी भाग को घेरे हुए जल राशियों को जलमंडल कहा जाता है।

पृथ्वी पर लगभग 1360 मिलियन क्यूबिक किलोमीटर जल है। पृथ्वी पर स्थित जल अनेक रुपों में पाया जाता है, जैसे महासागर, झीलें, नदियां, बांध, हिमनद, स्थल के नीचे स्थित भू-गार्भीक जल आदि।


जलमंडल पर अधिकांश जल लवणीय जल है,जो कि सागर और महासागर में स्थित है। पृथ्वी पर उपयोग हेतु उपलब्ध अलवण जल कुल जल का मात्रा का 1% से भी कम है।

3. वायुमंडल- हमारी पृथ्वी को वायु जितने स्थानों से घेरती है उसे वायुमंडल कहते हैं। वायु के बिना जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। वायुमंडल में विभिन्न प्रकार की गैसे पाई जाती है जिसमें ऑक्सीजन, कार्बन डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन महत्वपूर्ण है। वायुमंडल में ऑक्सीजन की मात्रा 21%,कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा 0.03 प्रतिशत, नाइट्रोजन की मात्रा 78%,ऑर्गन की मात्रा 0.93% तथा हाइड्रोजन, हिलियम, ओजोन, नियॉन, जेनॉन आदि अल्प मात्रा में उपस्थित रहती है।

वायु मंडल को भी निम्न भागों में विभाजित किया गया है-

1. क्षोभमण्डल- वायुमंडल की सबसे निचली परत है। प्रति 165 मीटर की ऊंचाई पर वायु का तापमान 1 डिग्री सेल्सियस की औसत दर से घटता है। इसे सामान्य ताप पतन दर कहते हैं। इसकी ऊंचाई ध्रुवों पर 8 किलोमीटर तथा विषुवत रेखा पर 18 किलोमीटर होती है। इस मंडल को संवहन मंडल और अधो मण्डल भी कहा जाता है।

2. समताप मंडल- यह वायुमंडल में क्षोभमंडल के ऊपर पाया जाता है। समताप मंडल में लगभग 30 से 7 किलोमीटर तक ओजोन गैस पाया जाता है जिसे ओजोन परत कहा जाता है। इसकी ऊपरी सीमा को 'स्ट्रैटोपाज' कहते हैं।

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3. मध्य मंडल- यह वायुमंडल की तीसरी परत है जो समताप सीमा के ऊपर स्थित है। इसकी ऊंचाई 50 से 80 किलोमीटर तक होती है तथा यहां तापमान में एकाएक गिरावट होती है। इसके ऊपरी सीमा को मेसोपाज कहते हैं।

4. ताप मंडल- मध्य मंडल के ऊपर वाले वायुमंडलीय भाग को ताप मंडल कहा जाता है। इस मंडल में ऊंचाई के साथ ताप में तेजी से वृद्धि होती है

ताप मंडल को दो भागों में बांटा गया है-

1. आयन मंडल- आयन मंडल ताप मंडल का निचला भाग है जिसमें विद्युत आवेशित कण होते हैं जिन्हें आयन कहते हैं। ताप मंडल के ऊपरी भाग आयन सीमा मंडल की कोई सुस्पष्ट ऊपरी सीमा नहीं है। इसके बाद अंतरिक्ष का विस्तार है। आयन मंडल की परत 80 से 500 किलोमीटर की ऊंचाई तक विस्तृत है। इस मंडल में सूर्य की  अत्यधिक ताप के कारण गैसें अपने आयनों में टूट जाती है।

2. बाह्ममंडल- धरातल से 500 से 1000 किलोमीटर के मध्य बाह्ममंडल पाया जाता है, कुछ विद्वान इसको 1600 किलोमीटर तक मानते हैं। इस मंडल के बाद वायुमंडल अंतरिक्ष में विलीन हो जाता है। इसमें हिलियम तथा हाइड्रोजन गैसों की अधिकता है।

4. जैवमंडल- पृथ्वी का वह हिस्सा जहां जीवन संभव है। पृथ्वी के धरातल से लेकर बाह्यमण्डल वातावरण को जैवमंडल कहा जाता है। पृथ्वी के चारों तरफ व्याप्त 30 किलोमीटर मोटी वायु,जल,स्थल,मृदा तथा शैल युक्त एक जीवनदायी परत होती है,जिसके अंतर्गत पादपों एवं जंतुओं का जीवन संभव होता है।जैवमंडल में समुद्र तल से 200 मीटर नीचे तक एवं 6000 मीटर की ऊंचाई तक जीवन संभव है।

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जैवमंडल में मुख्य रूप से तीन मंडल सम्मिलित है- स्थलमंडल, वायुमंडल, जलमंडल। जैवमंडल में सूर्य से प्राप्त उर्जा जीवन को संभव बनाती है,जबकि जीवों की पोषकों की आपूर्ति वायु, जल एवं मृदा से होती है। जैवमंडल के अंतर्गत समस्त प्राणी जगत जन्म लेता है और विकसित होता है।

पर्यावरण के संघटक

पर्यावरण अनेक तत्वों का समूह है तथा प्रत्येक तत्व का इसमें महत्वपूर्ण स्थान है। पर्यावरण की इस आधारभूत संरचना के आधार पर पर्यावरण को निम्न प्रकार से विभाजित किया जाता है- 

अजैविक या भौतिक पर्यावरण- स्थलमंडलीय पर्यावरण, वायुमंडलीय पर्यावरण, जलमंडलीय पर्यावरण।

जैविक पर्यावरण- वनस्पति पर्यावरण जंतु पर्यावरण पर्यावरण के संघटकों को तीन भागों में विभक्त किया गया है-

1. भौतिक या अजैविक संघटक- इसमें स्थल जलवायु आते हैं।

2. जैविक संघटक- इसमें पादप,मनुष्य,जंतु तथा सूक्ष्मजीव आते हैं।

3. ऊर्जा संघटक- इसमें सौर ऊर्जा तथा भूतापीय उर्जा आते हैं।

भौतिक या अजैविक संघटक

अजैविक संघटक के अंतर्गत सामान्य रूप से स्थल मंडल,वायु मंडल तथा जल मंडल को सम्मिलित किया जाता है। भौतिक वातावरण वायु,प्रकाश,ताप,जल,मृदा जैसे कारकों से बना है।

जैविक संघटक

पर्यावरण के जैविक घटकों के अंतर्गत पौधों,प्राणियों (मानव जंतु परजीवी सूक्ष्मजीव आदि) एवं अवघटकों को शामिल किया जाता है। जैविक संघटक का निर्माण तीन उपतंत्रों द्वारा होता है- 1.पादप, 2.जीव, 3.सूक्ष्म जीव।

1. पादप

पादप जैविक संघट को में सर्वाधिक महत्वपूर्ण होते हैं क्योंकि पौधे ही जैविक पदार्थों का निर्माण करते हैं। मानव सहित जंतु तथा सूक्ष्म जीव प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से पौधे पर ही निर्भर रहते हैं। हर पौधे अपना आहार स्वयं निर्धारित करते हैं अतः वह स्वपोषी कहलाते हैं। यह सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में सरल अजैविक पदार्थों से अपना भोजन स्वयं बना सकते हैं। वे स्वपोषी अथवा प्राथमिक उत्पादक कहलाते हैं।


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2. जीव

जीव स्वपोषी एवं परपोषी दोनों प्रकार के होते हैं। किंतु अधिकांश जीव परपोषित ही होते हैं। स्वपोषी जीव अपने आहार का निर्माण स्वयं करते हैं। परपोषी जीव अपने आहार हेतु अन्य साधनों पर निर्भर रहते हैं।

परपोषी जीव तीन प्रकार के होते हैं:-

1. मृतजीवी- वे जीव जो मृत पौधें तथा जीवों से घुलित रूप में कार्बनिक यौगिकों को प्राप्त करते है।

2. परजीवी- वे जीव जो अपने आहार हेतु अनेक जीवित जीवो पर निर्भर रहते हैं।

3. प्राणीसम्भोजी- यह जंतु जो अपना हार अपने मुख द्वारा ग्रहण करते हैं उदाहरण गाय हाथी ऊँट इत्यादि।

3. सूक्ष्मजीव

वे जिन्हें हम अपनी नंगी आंखों से नहीं देख सकते तथा जिन्हें देखने के लिए सूक्ष्मदर्शी यंत्र की आवश्यकता पड़ती है सूक्ष्मजीव कहलाती है।

सूक्ष्मजीव को वियोजक भी कहते हैं। ये मृत पौधों,जंतुओं के जैविक पदार्थों को सड़ा गलाकर वियोजित करते हैं वियोजन प्रक्रिया के दौरान यह अपना आहार भी ग्रहण करते हैं। सूक्ष्मजीवों के अंतर्गत सूक्ष्म बैक्टीरिया तथा कवक सम्मिलित है।


पर्यावरणीय अध्ययन

पर्यावरण के अध्ययन को पर्यावरणीय अध्ययन कहते हैं इसमें भौतिक विज्ञान,रसायन विज्ञान,जीव विज्ञान,चिकित्सा विज्ञान,कृषि जन स्वास्थ्य आदि अध्ययनों की अनेकों शाखाएं शामिल है।

पर्यावरणीय अध्ययन के कारण

1. पर्यावरण में जीवन के प्रत्येक स्वरूप की उपरी महत्वपूर्ण भूमिका है चाहे वह छोटा हो या बड़ा।
2. मानव जीवन को बनाए रखने के लिए जैव विविधता को संरक्षित करना आवश्यक है।
3. प्रकृति की संरचना विशिष्ट है तथा इसकी प्रत्येक क्रिया और कार्य का एक निश्चित उद्देश्य है।

पर्यावरणीय अध्ययन के विषय क्षेत्र

1. मानव द्वारा पर्यावरण में हो रहे तापमान वृद्धि तथा वायुमंडल में तापमान वृद्धि तथा जलवायु परिवर्तन।
2. जैविक विविधता का ह्यस।
3. ओजोन परत का ह्यस।
4. संसाधनों का सदुपयोग तथा उनका संरक्षण

मानव एवं पर्यावरण

भूगोल में मानव तथा पर्यावरण के पारस्परिक संबंध का अध्ययन किया जाता है.


मानव पर पर्यावरण का प्रभाव

विश्व का प्रमाण तथा नगरीय जनसंख्या प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से भौतिक पर्यावरण से प्रभावित होती है। पर्यावरण में सबसे अधिक प्रभाव जलवायु का मानव समाज और उनकी जीवन-शैली पर पड़ता है। जलवायु का प्रभाव प्रत्यक्ष रुप से प्रजातियों के रंग-रूप,आंख,नाक,शरीर की बनावट आदि पर पड़ता है।

पर्यावरण पर मानव का प्रभाव

पर्यावरण पर मानव के प्रभाव को दो भागों में विभाजित किया गया है-

1. प्रत्यक्ष प्रभाव- इस प्रभाव के अंतर्गत सुनियोजित तथा संकल्पित प्रकार के प्रभाव सम्मिलित है।
2. अप्रत्यक्ष प्रभाव- वे प्रभाव जो पहले से सोचे अथवा नियोजित नहीं होते हैं।

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1 Comments
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आप सब का अनोखा ज्ञान पे बहुत बहुत स्वागत है.