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Ego ! अभिमान कविता हिंदी में

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अभिमान/अहंकार कविता (Ego Poem In Hindi)

क्यों करते अभिमान रे मानव
क्यों करते अभिमान

रावण को अहंकार ने मारा
कंस को भी अहंकार ने
दुर्योधन को ना बचा सका
उसका अहंकार रे मानव, उसका अहंकार

क्यों करते अभिमान रे मानव
क्यों करते अभिमान

इस जग में ना कोई बड़ा-छोटा
सब है एक समान
उस खुदा के नज़रों में है
हम सब एक समान

धरती पर जब आये थे
आये थे खाली हाँथ
जाने के वक़्त भी जाएंगे
जाएंगे खाली हाँथ

फिर क्यों करते तुम बैर किसी से
क्यों करते भेद-भाव...
धर्म-जाति के नाम पर
लड़वाते हो हर बार

सबसे बड़े मूर्ख तो हम है
जो लड़ जाते हर एक बार है
तुम लड़वाते हो, हम लड़ते है
धर्म-जाति के नाम पे 

क्यों नही समझते हम सब
की हम सब भाई-भाई है
ये धरती अपनी माँ है
हम उस ईश्वर के एक संतान है

धर्म-जाति तो इंसानों ने बनाया
उस खुदा ने बनाया हमें,
एक समान है

मत करो तुम भेद-भाव किसी से
मत रखों तुम बैर किसी से

अब हम संभले तो ठीक है
वरना ये धरती खत्म हो जाएगी
उस खुदा को भी दुःख होगा
की किसको मैंने बनाया है।

Written By: Suraj Singh Raja


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