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Gudi Padwa | गुड़ी पड़वा 2021

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★ गुड़ी पड़वा क्या है?

यह महाराष्ट्रीयन नव वर्ष के उत्सव का प्रतीक है। दक्षिण भारत के राज्यों में, गुड़ी पड़वा के दिन को फसल दिवस के रूप में मनाया जाता है, जो वसंत के मौसम के प्रारंभ को दर्शाता है।

यह नव वर्ष का उत्सव पूरे भारत में विभिन्न नामों, सांस्कृतिक मान्यताओं और उत्सवों के साथ मनाया जाता है। इस दिन विभिन्न अनुष्ठान होते हैं जो सूर्योदय से शुरू होते हैं और पूरे दिन चलते रहते हैं।

★ गुड़ी पड़वा कब मनाया जाता है?

हिंदू कैलेंडर के मुताबिक, चैत्र मास के पहले दिन को गुड़ी पड़वा के रूप में मनाया जाता है, जब किसान रबी फसलों को काटते हैं तो उसे हिंदू नव वर्ष की शुरुआत मानते हैं। गुड़ी पड़वा का दिन चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के नाम से भी काफी लोकप्रिय है।

★ गुड़ी पड़वा कैसे मनाया जाता है?

गुड़ी पड़वा के दिन कई जगहों पर जुलूस आयोजित किए जाते हैं। महाराष्ट्र में लोग इस दिन नए परिधानों में तैयार होते हैं। उनके घरों में, विशेष प्रकार के पारंपरिक व्यंजन तैयार किए जाते हैं, जैसे पूरन पोली, श्रीखंड, पूरी और मीठे चावल भी तैयार किये जाते है, जिन्हें लोकप्रिय रूप से सक्कर भात कहा जाता है।

पूरन पोली एक प्रकार की मीठी रोटी होती है।

गुड़ी पड़वा के दिन लोग अपने परिवारजनों और दोस्तों के साथ उत्सव का आनंद लेते हैं और जगहों पर जुलूस का हिस्सा भी बनते हैं।

★ गुड़ी पड़वा का क्या है महत्व?

इस दिन भगवान ब्रह्मा की पूजा और अर्चना की जाती है, भगवान ब्रह्मा ब्रह्मांड के परम निर्माता हैं। शास्त्रों के अनुसार भगवान ब्रह्मा में गुड़ी पड़वा के दिन ही ब्रह्मांड का निर्माण प्रारम्भ किया था। महाराष्ट्र राज्य में गुड़ी पड़वा के दिन को भव्यता और उत्साह के साथ मनाया जाता है।

वहां के लोगों का इस त्यौहार को लेकर ऐसा मानना है कि यह त्योहार सभी बुराईयों को दूर करता है। उसके साथ ही यह त्यौहार सौभाग्य और समृद्धि को भी आकर्षित करता है। गुड़ी पड़वा को आंध्र प्रदेश और कर्नाटक राज्यों में उगाड़ी त्योहार के रूप में मनाया जाता है।

★ गुड़ी पड़वा का क्या है इतिहास?

गुड़ी पड़वा पर्व पर पौराणिक ग्रंथों में कई कहानियां मिलती हैं उनमें से प्रचलित कहानी है  भगवान राम की मान्यता है कि इस दिन भगवान श्रीराम ने दक्षिण में लोगों को बाली के अत्याचारों से मुक्ति दिलाई थी। इसी खुशी में हर घर में गुड़ी यानि कि विजय पताका फहराई गई। यह परंपरा तभी से प्रचलित है ,जो आज भी कई स्थानों पर मनाई जाती है।

गुड़ी पड़वा से जुड़ी एक और कहानी है जो शालिवाहन शक से जुड़ी हुई है। इस दिन को लेकर कहानी यह है कि किसी जमाने में शालिवाहन नामक एक कुम्हार के पुत्र ने मिट्टी के सैनिकों की सेना बनाई और उन सैनिकों पर पानी छिड़कर उसमें प्राण फूंक दिये। फिर उन्हीं सैनिकों की सेना के मदद से उसने शक्तिशाली शत्रुओं का नाश किया।

शालिवाहन की शत्रुओं पर प्राप्त की गई इसी विजय के प्रतीक स्वरूप शालिवाहन शक का भी आरंभ हुआ। इसी विजय के उपलक्ष्य में गुड़ी पड़वा का यह पर्व भी मनाया जाता है।

★ इस पर्व का किंवदंती क्या है?

किंवदंती में कहा गया है कि यह वह दिन है जब भगवान ब्रह्मा ने इस सृष्टि की रचना की और इस प्रकार गुड़ी पड़वा के दिन, सत्य युग का आरंभ हुआ।

★ गुड़ी पड़वा के अनुष्ठान क्या हैं?

गुड़ी पड़वा के दिन अनुष्ठान सूर्योदय से पूर्व शुरू होता है जहां भक्त सुबह जल्दी उठते हैं और अपने शरीर पर तेल लगाकर पवित्र स्नान करते हैं। वहीं घर की महिलाएं घरों और प्रवेश द्वार को आम के पत्तों और सुंदर फूलों से सजाती हैं।

गड़ी पड़वा (Gudi Padwa 2021) के दिन महाराष्ट्र के लोग पूरे घर की विशेष प्रकार से साफ-सफाई करते हैं। गुड़ी पड़वा के दिन मराठी महिलाएं 9 गज लंबी साड़ी जिसे नौवारी कहा जाता है वो पहनकर 16 श्रृंगार करती हैं और पुरुष धोती-कुर्ती के साथ लाल या केसरी रंग की पगड़ी बांधते हैं।

इस दिन भक्तजन भगवान ब्रह्मा की पूजा और प्रार्थना करते हैं और उसके बाद गुड़ी फहराते हैं। गुड़ी फहराने के साथ, भक्तजन भगवान विष्णु का आह्वान कर सकते हैं। बाद में, वे लोग देवता की पूजा करते हैं और समृद्धि और सुरक्षा प्राप्त करने के लिए भगवान विष्णु के दिव्य आशीर्वाद के लिए प्रार्थना करते हैं।

इस दिन गुड़ी को पीले रंग के रेशमी कपड़े के टुकड़े, आम के पत्तों और लाल रंग के फूलों की माला से सजाया जाता है। इस दिन लोग गुड़ी के चारों ओर सुंदर गुड़ी पड़वा रंगोली भी बनाते हैं।

★ गुड़ी पड़वा कब और क्यों मनाया जाता है?

> इस साल 13 अप्रैल 2021 को है. चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को ही हिंदू नववर्ष का आरंभ भी माना जाता है। गुड़ी पड़वा को कई जगहों या क्षेत्रों में उगादि, युगादि, वर्ष प्रतिपदा भी कहा जाता है। दरअसल गुड़ी पड़वा को लेकर मान्यता यह है कि इसी दिन भगवान ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना आरंभ की थी इसलिये इसे नव संवत्सर के रूप में भी मनाया जाता है।

★ गुड़ी पड़वा का अर्थ क्या है?

> गुड़ी का अर्थ 'विजय पताका' होता है तथा पड़वा का अर्थ प्रतिपदा होता है। आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में 'उगादि' और महाराष्ट्र में यह पर्व 'ग़ुड़ी पड़वा' के रूप में मनाया जाता है।

★ गुड़ी पड़वा के दिन क्या करना चाहिए?

> सुबह तेल से उबटन व स्नान कर संवत्सवर की मूर्ति बनाकर उसकी पूजा करें। ब्राह्मणों को भोजन व दान पुण्य करें। प्याऊ की स्थापना करवाएं। बता दें कि चैत्र मास की शुक्‍ल प्रतिपदा को गुड़ी पड़वा या वर्ष नव संवत्सर 2077 प्रतिप्रदा या युगादि के नाम से जाना जाता है।

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