आत्मा के बारे में साधारणतया यह माना जाता है कि वह शरीर के हर भाग में एवं रेशे-रेशे में मौजूद होती है। यानी जहां भी संवेदना होता है, वहीं आत्मा की उपस्थिति महसूस की जाती है।
अगर इस मान्यता को हमलोग यथार्थ और तथ्य की कसौटी पर कसें तो नाखून (Nail) और बाल (Hair) जैसे हिस्सों में आत्मा का वास नहीं होना चाहिए। लेकिन शास्त्रों के अनुसार आत्मा मूलत: मस्तिष्क (Brain) में निवास करती है।
योग की भाषा में कहें तो उस केंद्र को सहस्रार चक्र या ब्रह्मरंध्र कहते हैं। अब विज्ञान भी इस बात की पुष्टि करने लगा हैं। विज्ञान के अनुसार मौत के बाद आत्मा (Soul) या चेतना शरीर के उस भाग से निकल कर बाहरी जगत में व्याप्त हो जाती है।
शास्त्र की भाषा में कहें तो आत्मा शरीर से निकलकर दूसरे लोकों की यात्रा पर निकल जाती है। मृत्यु का करीब से अनुभव करने वाले लोगों या मेडिकली तौर पर मृत करार दिए गए किंतु फिर जी उठे लोगों के अनुभवों के आधार पर यह सिद्धांत काफी चर्चा में है।
* विज्ञान के अनुसार शरीर में आत्मा
शरीर की तंत्रिका प्रणाली (Nervous System) से व्याप्त क्वांटम जब अपनी जगह छोड़ने लगता है तो मृत्यु जैसा अनुभव होता है। इस सिद्धांत का आधार या निष्कर्ष यह है की मस्तिष्क में Quantum computer के लिए चेतना (Consciousness) एक प्रोग्राम की तरह काम करती है।
यह चेतना इंसान की मृत्यु के बाद भी ब्रह्मांड में परिव्याप्त रहती है। 'डेली मेल' की खबर के मुताबिक एरिजोना विश्वविद्यालय में Anesthesiology (ज्ञानेन्द्रिय-विज्ञान) एवं मनोविज्ञान विभाग (Psychology Department) के प्रोफेसर एमरेटस एवं Consciousness Learning Center (चेतना अध्ययन केंद्र) के निदेशक डॉ. स्टुवर्ट हेमेराफ ने इस सिद्धांत को आगे बढ़ाया है।
उनलोगों से पहले ब्रिटिश मनोविज्ञानी सर रोजर पेनरोस इस दिशा में काम कर चुके हैं। प्रयोगों और शोध अध्ययनों के मुताबिक आत्मा (Soul) का मूल स्थान मस्तिष्क की कोशिकाओं के अंदर बने ढांचों में होता है जिसे Microtubules (सूक्ष्मनलिकाएं) कहते हैं।
वैज्ञानिकों ने इस सिद्धांत को Archived objective reduction (संग्रहीत उद्देश्य में कमी) (AOR) का नाम दिया है। इस सिद्धांत के अनुसार हमारी आत्मा (Soul) मस्तिष्क में Neuron (तंत्रिकाकोशिका) के बीच होने वाले संबंध से कहीं व्यापक है।
* इंसानी शरीर में ऐसे रहती है आत्मा
दरअसल, इसका निर्माण उन्हीं तंतुओं से हुआ जिससे ब्रह्मांड बना था। यह आत्मा (Soul) काल के जन्म से ही व्याप्त थी। इस निष्कर्ष के बाद भारतीय दर्शन या योग अध्यात्म की इस मान्यता को काफी बल मिला है कि चेतना या आत्मा (Soul) विश्व ब्रह्मांड का ही एक अभिन्न अंग है।
शरीर (Body) में उसकी एक किरण या स्फुल्लिंग मात्र रहता है। मृत्यु जैसे पट परिवर्तन में Microtubules (सूक्ष्मनलिकाएं) अपनी क्वांटम अवस्था गंवा देते हैं, लेकिन इसके अंदर के अनुभव नष्ट नहीं होते। आत्मा केवल शरीर छोड़ती है और ब्रह्मांड में विलीन हो जाती है।
हेमराफ का कथन है की हृदय (Heart) काम करना बंद हो सकता है, रक्त का प्रवाह रुक जाता है, Microtubules (सूक्ष्मनलिकाएं) अपनी क्वांटम अवस्था गंवा देते हैं, लेकिन वहां मौजूद क्वांटम सूचनाएं नष्ट नहीं होतीं।
वे सूचनाएं व्यापक ब्रह्मांड में विलीन या वितरित हो जाती हैं। यदि रोगी ( Patient) ठीक नहीं हो पाता और उसकी मृत्यु हो जाती है तो क्वांटम सूचना शरीर के बाहर व्याप्त या फैल हो जाती है।
धर्म परंपरा इस अऩुभव को स्मृति (Memory) और संस्कार के साथ शरीर के बाहर रहने और उपयुक्त स्थितियों का इंतजार करना बताते हैं। दूसरे शब्दों में आत्मा पुनर्जन्म की तैयारी करने लगती है।
आप सब का अनोखा ज्ञान पे बहुत बहुत स्वागत है.