डेजा वू: जब आपलोग किसी अनजान जगह (स्थान) जाते है तो ऐसा लगता है, की आप यहां पहले भी आ चुके हैं।
क्या आपलोगों को कभी ऐसा लगता है कि आप ये पहले पढ़ चुके या सीख चुके हैं? ऐसा आपलोगों के साथ भी कई बार हुआ होगा जब किसी नई जगह या किसी अनजान जगह पर पहुंचते ही लगता है कि आप तो यहां पहले भी आ चुके हैं।
आपके साथ ऐसा ही कई बार दोस्तों (Friends) के बीच बैठे हुए या किसी Topic पर बात करते हुए ऐसा लगता है कि बिलकुल यही बातें पहले भी हो चुकी हैं। ये बातें कब, कहां, हुई बस ये समझ नहीं आता। आप कुछ समय के लिए इस अनुभव (Feeling) के बारे में सोचने की कोशिश भी करते हैं, लेकिन जब कोई पुराना तजुर्बा (Old experience) याद नहीं आता तो आप आगे बढ़ जाते है।
इस महसूस (Feel) को 'डेजा वू' कहते है। 'डेजा वू' ये एक फ्रेंच शब्द है जिसका अर्थ होता है 'पहले भी महसूस किया हुआ' (Already felt)। 'Deja Vu' के अंदर ही दो तरह की Feeling होती हैं. 'डेजा विजेत' इसका अर्थ हुआ 'पहले भी देखी गई जगह' और 'डेजा वेकु' इसका मतलब 'पहले भी जिया हुआ'।
इन दोनों भावनाओं (Feelings) से ही बनती है 'डेजा वू' की फीलिंग। लेकिन ऐसा कैसे होता है कि जब आप पहले कभी उस जगह गए ही नहीं हैं और ना ही वह घटना पहले कभी हुई है, तो ये 'डेजा वू' की फीलिंग आती कहां से है?
क्या इन घटनाओं का पुनर्जन्म (पिछले जन्म) से कुछ लेना-देना है?
पहले ऐसा माना जाता था कि पहले भी हो चुकी घटनाओं (Events) की यह भावना कहीं ना कहीं पुनर्जन्म (पिछले जन्म) से जुड़ी हुई है।
कई भारतीय फिल्मों (Indian Movie) में डेजा वू का प्रयोग अच्छे तरीके से किया गया है, जब हीरो को एक स्थान पर पहुंचकर बार-बार कुछ याद आता है। लेकिन वैज्ञानिकों द्वारा लगातार यह सिद्ध किया है कि यह गलत या झूठ है। इस पूरे घटनाक्रम का वास्ता (relation) हमारे दिमाग (Brain) के सोचने और यादें संजोकर रखने वाले हिस्से से है।
वर्ष 2016 में वैज्ञानिक ओ' कोनोर और उनकी टीम ने कुछ व्यक्तियों के साथ एक प्रयोग किया। उन्होंने इन प्रतिभागियों (The participants) के सामने कुछ शब्द (Word) कहे जिसे उन्हें याद रखने के लिए कहा गया। कुछ देर बार हर प्रतिभागी से पहले सुने हुए शब्दों (Words) के बारे में पूछा गया। लेकिन यहीं एक पेंच (screw) था।
उदाहरण के लिए:- ओ' कोनोर की टीम ने किसी प्रतिभागी के सामने 'कम्बल, तकिया, बिस्तर, सपने' जैसे शब्दों (Words) का प्रयोग (जिक्र) किया. ये सारे Word आपस में जुड़े हुए हैं, लेकिन इस Team ने कहीं भी वो Word नहीं बोला, जो इन शब्दों को जोड़ता है, नींद। कुछ समय बाद जब इस प्रतिभागी से यह पूछा गया कि 'न' से शुरू होने वाले किसी शब्द (Word) का प्रयोग (जिक्र) किया गया था, तो उसने मना कर दिया।
लेकिन जब उस प्रतिभागी से एक-एक करके ये शब्द (Word) पूछे गए और 'नींद' शब्द के बारे में पूछा, प्रतिभागी थोड़ा Confuse हो गया कि उसने यह शब्द (Word) सुना था या नहीं।
कुछ समय सोचने के बाद उस प्रतिभागी (Participants) ने कहा कि उसने 'नींद' शब्द भी सुना था। ऐसा होने के पीछे का कारण यह था कि जब 'कम्बल, तकिया, बिस्तर, सपने' जैसे शब्द (Word) उस प्रतिभागी के सामने बोले गए थे, तब उस प्रतिभागी के मन में नींद की भावना पैदा हुई थी। यही कारण है कि 'नींद' शब्द सुनते ही उसे लगा कि यह शब्द भी उसके सामने कहा गया था।
ये पूरा खेल दिमाग का है:
हमारे दिमाग (Brain) का 'सोचने और समझने' वाला भाग या हिस्सा इस 'डेजा वू' की फीलिंग के लिए उत्तरदायी है। जब हम बहुत थके (Tired) हुए होते हैं या बहुत ज्यादा Relax होते हैं, तब हमारा दिमाग या तो थका होता है या तो सोया हुआ होता है। ऐसी स्थिति में कभी-कभी हम मिलते-जुलते शब्दों (Words) या वैसी ही मिलती-जुलती भावनाओं (Feelings) को एक पुरानी याद समझ लेते हैं और ऐसे में ही ये 'डेजा वू' की भावना जन्म लेती है।
एक थ्योरी ये भी है:
एक लंबे वक़्त से ये भी माना जाता था कि 'डेजा वू' हमारे सोचने और याददाश्त वाले हिस्सों के काम पर निर्भर करता है। दरअसल हमारे दिमाग (Brain) में एक बहुत बड़ा Circuit box लगा है। इसमें ढेर सारे अलग-अलग Compartment बने हुए हैं। एक Compartment है जो हमारी यादों को संभाल कर रखता है और एक हिस्सा हमें decision लेने में मदद करता है।
हमारे दिमाग (Brain) का कोई हिस्सा हमारे Emotion संभालता है, तो दिमाग का कोई हिस्सा हमारे दिनभर के कामों का लेखा-जोखा रखता है। 'डेजा वू' के Case में memory (याददाश्त) वाले और वर्तमान का Work (कामकाज) संभालने वाले हिस्सों पर निर्भर करता है।
Memories (यादें) यानी पुरानी चीजें, जो दिमाग के उस Compartment में जमा हैं। जब भी यादों (Memories) वाला बक्सा (Box) खोलते हैं सारी पुरानी यादें दिमाग में ऐसे चलने लगती हैं जैसे सच में वो सब हो रहा है। कई बार तो ऐसा होता है कि आंखें खुली होने पर भी हमें इस वक्त सामने क्या चल रहा है वो भी नहीं दिखता।
दिमाग (Brain) का वो भाग जो वर्तमान में जीता है, वो और यादों वाला भाग एक दूसरे के आगे पीछे चलते हैं। ऐसा मान लीजिए कि इन दोनों हिस्सों के बीच में है एक Shutter. अगर वर्तमान वाला भाग काम कर रहा है तो यादों वाला भाग बंद रहेगा।
अगर यादों वाला शटर खुल गया तो थोड़ी देर के लिए वर्तमान वाले का शटर बंद हो जाएगा। लेकिन कभी-कभी ऐसा होता है कि दिमाग (Brain) का वर्तमान वाला भाग खुला हुआ है और यादों वाला भाग भी बंद नहीं हुआ है। इस तरह एक ही वक़्त में दोनों हिस्सें (भाग) खुले रह गए।
इसलिए हमारे दिमाग (Brain) को लगता है कि इस जगह (स्थान) या इस घटना (incident) को हम यादों वाले बक्से से निकाल रहे हैं। दिमाग confuse हो जाता है। जो अभी हमने पहली बार देखा, उसको भी हम पुरानी यादें समझ लेते है।
तो अगली बार से जब भी आपको 'डेजा वू' हो, तो कुछ वक़्त रुककर बिना ज्यादा Analysis किए अपने कार्य में जुट जाना।
आप सब का अनोखा ज्ञान पे बहुत बहुत स्वागत है.