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चौरी चौरा कांड,कब,कहाँ और कैसे हुई थी? - anokhagyan.in

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चौरी चौरा कांड 4 फरवरी 1922 को ब्रिटिश भारत में गोरखपुर जिले के चौरी चौरा में हुई थी।

अंग्रेजी हुकूमत के समय सम्भवत: देश का पहला यह काण्ड है जिसमें पुलिस की गोली खाकर जान गंवाने वाले आजादी के दीवानों के अलावा गुस्से का शिकार बने पुलिस वाले भी शहीद माने जाते हैं। 

इस कांड में पुलिस वालों को अपनी ड्यूटी के लिए शहीद माना जाता है, तो आजादी की लड़ाई में जान गवाने से सत्याग्रहियों को। 4 फरवरी को दोनों अपनी-अपनी शहादत दिवस के रूप में मनाते हैं। चौरी चौरा के थाने के पास बनी समाधी पर पुलिस वाले शहीद पुलिस कर्मियों को श्रद्धांजलि देते हैं। वहीं अंग्रेजी पुलिस के शिकार सत्याग्रहियों को पूरा देश श्रद्धांजलि देकर नमन करता है।

1. शांति मार्च निकाल रहे सत्याग्रहियों पर पुलिस कर्मियों ने चलाई थी गोलियां।
2. फायरिंग की घटना से गुस्साई भीड़ ने फूंक दिया था चौरी चौरा थाना।
3. पुलिस की फायरिंग में 11 जानें और थाना फूंकने में 23 की जानें गई थी।

महात्मा गांधी ने विदेशी कपड़ों के बहिष्कार तथा अंग्रेजी पढ़ाई छोड़ने और चरखा चलाकर कपड़े बनाने का अह्वान किया था। उनका यह सत्याग्रह आंदोलन पूरे देश में रंग ला रहा था। 4 फरवरी 1922 दिन शनिवार को चौरी चौरा के भोपा बाजार में सत्याग्रही इकट्ठा हुए और थाने के सामने से जुलूस की शक्ल में गुजर रहे थे। तत्कालीन थानेदार ने जुलूस को अवैध मजमा घोषित कर दिया। एक सिपाही ने वालंटियर की गांधी टोपी को पांव से रौंद दिया। गांधी टोपी को रौंदता देख सत्याग्रही आक्रोशित हो गए।

उन्होंने इसका विरोध किया तो पुलिस ने जुलूस पर फायरिंग शुरू कर दी। जिसमें 11 सत्याग्रहियों की मौके पर ही मौत हो गई जबकि 50 से ज्यादा सत्याग्रही घायल हो गए। गोली खत्म होने के बाद पुलिस कर्मी थाने की तरफ भागे। फायरिंग से भड़की भीड़ ने उन पुलिसकर्मियों पर हमला बोल दिया।

भीड़ ने थाने के पास स्थित एक दुकान से एक टीना केरोसीन तेल (Kerosene oil) उठा लिया। सरपत और मूंज का बोझा थाना परिसर में बिछाकर उस पर केरोसीन उड़ेलकर उसमे आग लगा दी।

उस आग से बचने के लिए थानेदार ने भागने की कोशिश की तो भीड़ ने उसे पकड़कर आग में फेंक दिया। चौरी चौरा के इस काण्ड से एक सिपाही मुहम्मद सिद्दिकी भाग निकला और झंगहा पहुंच कर वह गोरखपुर के तत्कालीन कलेक्टर को इस घटना की सूचना दी।

4. थाने में जलने वाले 23 पुलिसकर्मियों की सूची 

1. थानेदार गुप्तेश्वर सिंह
2. उप निरिक्षक सशस्त्र पुलिस बल पृथ्वी पाल सिंह
3. हेड कांस्टेबल वशीर खां
4. कपिलदेव सिंह
5. लखई सिंह
6. रघुवीर सिंह
7. विषेशर राम यादव
8. मुहम्मद अली
9. हसन खां
10. गदाबख्श खां
11. जमा खां
12. मगरू चौबे
13. रामबली पाण्डेय
14. कपिल देव
15. इन्द्रासन सिंह
16. रामलखन सिंह
17. मर्दाना खां
18. जगदेव सिंह
19. जगई सिंह

चौरी चौरा के दिन वेतन लेने थाने पर आए

1. चौकीदार बजीर
2. घिंसई
3. जथई 
4. कतवारू राम

चौरी चौरा के घटना के लिए दोषी मानते हुए इन्हें दी गई थी फांसी

1. अब्दुल्ला
2. भगवान
3. विक्रम
4. दुदही
5. काली चरण
6. लाल मुहम्मद
7. लौटी
8. मादेव
9. मेघू अली
10. नजर अली
11. रघुवीर
12. रामलगन
13. रामरूप
14. रूदाली
15. सहदेव
16. सम्पत पुत्र मोहन
17. संपत
18. श्याम सुंदर
19. सीताराम

आदि व्यक्तियों को इस घटना के लिए दोषी मानते हुए फांसी दी गई थी।

★ चौरी चौरा के घटना को गांधीजी ने मानी थी हिंसक आंदोलन

गोरखपुर जिला कांग्रेस कमेटी के उपसभापति (Deputy Chairman) प. दशरथ प्रसाद द्विवेदी ने चौरी चौरा के इस घटना की सूचना गांधीजी को पत्र लिखकर दी थी। गांधीजी इस घटना को हिंसक मानते हुए अपना असहयोग आंदोलन स्थगित कर दिया था।

★ मदनमोहन मालवीय ने 151 अभियुक्तों को बचाया था फांसी की सजा से

चौरी चौरा काण्ड के लिए पुलिस ने सैकड़ों लोगों को अभियुक्त बनाया। गोरखपुर सत्र न्यायालय के न्यायाधीश Mr. H. Holmes ने 9 जनवरी 1923 को 418 पन्नों के निर्णय में 172 अभियुक्तों को सजाए मौत का फैसला सुनाया। दो को दो साल की कारावास और 47 को संदेह के लाभ में दोषमुक्त कर दिया।

इस फैसले के खिलाफ जिला कांग्रेस कमेटी गोरखपुर ने इलाहाबाद High Court (महान्यायालय) में अभियुक्तों की तरफ से अपील दाखिल की जिसका क्रमांक 51 सन 1923 था।

जिला कांग्रेस कमेटी की तरफ से इस अपील की पैरवी पं. मदन मोहन मालवीय ने की। मुख्य न्यायाधीश Sir Grimoud Pearce तथा न्यायमूर्ति (Justice) pegut ने सुनवाई शुरू की।

30 अप्रैल 1923 को फैसला आया। इस फैसले के तहत 19 अभियुक्तों को मृत्यु दण्ड की सजा, 16 अभियुक्तों को काले पानी की सजा इसके अलावा बचे हुए लोगों को आठ, पांच व दो साल की सजा दी गई। तथा बचे हैं तीन को दंगा भड़काने के लिए दो साल की सजा मिली। और 38 अभियुक्तों को छोड़ दिया गया।

कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न

1. चौरी चौरा कांड कब हुआ था?
चौरी चौरा कांड 4 फरवरी 1922 को.

2. चौरी चौरा कांड क्यों हुआ?
4 फरवरी 1922 दिन शनिवार को चौरी चौरा के भोपा बाजार में सत्याग्रही इकट्ठा हुए और थाने के सामने से जुलूस की शक्ल में गुजर रहे थे। तत्कालीन थानेदार ने जुलूस को अवैध मजमा घोषित कर दिया। एक सिपाही ने वालंटियर की गांधी टोपी को पांव से रौंद दिया। गांधी टोपी को रौंदता देख सत्याग्रही आक्रोशित हो गए।

उन्होंने इसका विरोध किया तो पुलिस ने जुलूस पर फायरिंग शुरू कर दी। जिसमें 11 सत्याग्रहियों की मौके पर ही मौत हो गई जबकि 50 से ज्यादा सत्याग्रही घायल हो गए। गोली खत्म होने के बाद पुलिस कर्मी थाने की तरफ भागे। फायरिंग से भड़की भीड़ ने उन पुलिसकर्मियों पर हमला बोल दिया।

भीड़ ने थाने के पास स्थित एक दुकान से एक टीना केरोसीन तेल (Kerosene oil) उठा लिया। सरपत और मूंज का बोझा थाना परिसर में बिछाकर उस पर केरोसीन उड़ेलकर उसमे आग लगा दी।

उस आग से बचने के लिए थानेदार ने भागने की कोशिश की तो भीड़ ने उसे पकड़कर आग में फेंक दिया। चौरी चौरा के इस काण्ड से एक सिपाही मुहम्मद सिद्दिकी भाग निकला और झंगहा पहुंच कर वह गोरखपुर के तत्कालीन कलेक्टर को इस घटना की सूचना दी।

3. चौरी चौरा कांड कहाँ हुआ था?
ब्रिटिश भारत में गोरखपुर जिले (उत्तर प्रदेश) के चौरी चौरा में हुई थी।

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