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आयो चन्द्रमा(उपग्रह) के बारे में हिंदी में- anokhagyan.in

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आयो बृहस्पति का तीसरा सबसे बड़ा उपग्रह है। आयो सौरमंडल का चौथा सबसे बड़ा चंद्रमा है। आयो का व्यास 3,642 किलोमीटर है। आयो बृहस्पति के चारों उपग्रहों में सबसे करीबी कक्षा में परिक्रमा करने वाला उपग्रह(चंद्रमा) है।



Jupiter (बृहस्पति) के इतने करीब होने की वजह से उस ग्रह के भयंकर गुरुत्वाकर्षण से पैदा होने वाला ज्वार भाटा बल आयो को गूंथता रहता है जिस वजह से आयो पर बहुत से ज्वालामुखी है।


2010 तक आयो पर 400 से भी अधिक सक्रिय ज्वालामुखी गिने जा चुके हैं। सौरमंडल में आयो उपग्रह में सबसे ज्यादा भौगोलिक उथल-पुथल हो रही है। सौरमंडल के बाहरी चंद्रमाओं की बनावट में ज्यादातर बर्फ़ ही होती है, लेकिन आयो पथरीले पत्थरों का बना हुआ है। 


आयो चन्द्रमा(उपग्रह) की खोज गैलीलियो गैलीली ने 8 जनवरी 1610 को किया था।
कक्षीय अवधि:- 42 घंटा।
आयो से पृथ्वी की दूरी:- 628.3 मिलियन।
आयो की त्रिज्या:- 1,821.6 किलोमीटर है।
ग्रेविटी:- 1.796 मी/s^2 है।
आयो का सतह क्षेत्र:- 4,1910000 किलोमीटर^2(0.082 पृथ्वी)।
आयो की माध्य कक्षा त्रिज्या:- 421700 किलोमीटर है।


नाम की उत्पत्ति


आयो प्राचीन यूनानी धार्मिक कथाओं में ज्यूस की प्रेमिका थी। ज्यूस का यूनानी धर्म में वही स्थान है जो भारत में बृहस्पति का है। "ज्यूपिटर" ज्यूस का रोमन नाम है।


आयो का आकार


आयो उपग्रह पृथ्वी के चंद्रमा से थोड़ा बड़ा है। आयो का व्यास चंद्रमा के व्यास से लगभग 5% अधिक है। आयो उपग्रह का ढांचा पृथ्वी, शुक्र और मंगल जैसे पत्थरीले ग्रहों से मिलता-जुलता है। 


आयो उपग्रह के बाहरी भाग में सिलिकेट और आंतरिक भाग में लोहा या लोहे और गंधक(सल्फर) का मिश्रण है।
इन धातुओं का केंद्रीय भाग आयो उपग्रह के द्रव्यमान का 20% है।


 गैलिलियो यान से मिली जानकारी के अनुसार आयो उपग्रह के सतह के नीचे एक पिघले पत्थर(मैग्मा) की 50 किलोमीटर मोटी तह होने की संभावना है।

इस पिघले पत्थर(मैग्मा) का तापमान 1,200 डिग्री सेंटीग्रेड के आसपास है।

वैज्ञानिकों ने जब पहली बार आयो की सतह की तस्वीरें देखी तो उन्होंने देखा कि उस पर उल्का पिंडों के गिरने से बने प्रहार क्रेटर नहीं थे जबकि चंद्रमा, मंगल, बुध और बृहस्पति के उपग्रह पर ऐसे बहुत से क्रेटर है। बल्कि उन्हें एक लाल, पीली, हरी रंग-बिरंगी सतह दिखी।


आयो के रंग-बिरंगी सतह की वजह यह थी कि बृहस्पति और उनके तीन उपग्रह (गैनिमीड, कैलिस्टो और यूरोपा) के ज्वार भाटा बल से आयो बुरी तरह से गूंथा जाता है और उस पर कई ज्वालामुखीयों से लावा उगलता रहता है।

इन लावाओं की वजह से आयो की सतह पर क्रेटर भड़ जाता है और पूरी जमीन पर रंग-बिरंगी रासायनिक यौगिक फैल जाते हैं।

* बृहस्पति से आयो उपग्रह की दूरी:- 422 हजार किलोमीटर है।

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2 Comments
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आप सब का अनोखा ज्ञान पे बहुत बहुत स्वागत है.