आकाश
धरती के बाह्य अंतरिक्ष का वह भाग जो उस पिंड के सतह से दिखाई देता है;वही आकाश है। अनेक कारणों से इसे परिभाषित करना कठिन है। दिन के प्रकाश में पृथ्वी का आकाश गहरे-नीले रंग के सतह जैसा प्रतीत होता है जो हवा के कणों द्वारा प्रकाश के प्रकीर्णन के परिणामस्वरूप घटित होता है। जबकि रात में हमें धरती का आकाश तारों से भरा हुआ काले रंग का सतह जैसा ज्ञान पड़ता है।
रंग
आसमान का अपना रंग नही होता है वो तो सूर्य से आने वाला प्रकाश जब आकाश में उपस्थित धूल इत्यादि से मिलता है तो वो फैल जाता है। नीला रंग,तरंगदैर्ध्य के कारण अनेक रंगों की अपेक्षा में अधिक फैलता है इसलिए आकाश पृथ्वी की सतह से नीला दिखाई देता है।आकाश नीला क्यों दिखता है?
जब सूर्य से आने वाला प्रकाश पृथ्वी के वातावरण में प्रवेश करता है तब वह कण वातावरण से टकराकर इधर-उधर बिखर जाता है,लेकिन श्वेत प्रकाश के नीले रंग को वातावरण के कण परावर्तित कर देते है इसी कारण आकाश का रंग नीला दिखाई देता है।अंतरिक्ष यात्रियों को अंतरिक्ष में आकाश कैसा दिखता है?
अंतरिक्ष यात्रियों को अंतरिक्ष में आकाश काला दिखाई देता है क्योंकि वहां वायुमंडल की तरह प्रकाश का प्रकीर्णन नही हो पाता,जैसा की यह पृथ्वी पर होता है। भौतिक के अनुसार पृथ्वी को घेरे हुए जो गोलाकार गुम्बज दिखाई पड़ता है उसी को आकाश कहते है। पृथ्वी की परिक्रमा चाहे हम जलमार्ग या स्थलमार्ग से करे,यह आकाश हमें सर्वत्र इसी रूप में दिखाई पड़ता है।प्रश्न उठता है कि क्या आकाश कोई वास्तविक पदार्थ है। ऊपर देखने पर हमें यह एक पर्दे के रूप में आभास होता है। वास्तव में यह कोई पर्दा नही है। सूर्य,चंद्र,ग्रह तथा नक्षत्र, पृथ्वी के परिभ्रमण तथा घूर्णन के कारण अथवा अपनी निजी गति के कारण विभिन्न आपेक्षिक गतिविधियों से इसी पर्दे पर चलते दिखाई पड़ते है।
चंद्रमा की दूरी केवल 2 लाख 39 हजार मील है,जिसे तय करने में आकाश को कुल सवा सेकंड लगता हैं जबकि नीहारिकाओं की दूरियाँ इतनी अधिक है कि उनसे चलकर पृथ्वी तक पहुँचने में प्रकाश को हजारों वर्ष लगते है। आकाश के पद्य भाग में केवल एक भाग को तारों ने ले रखा है:इसलिए आकाश को नभ(शुन्य) भी कहा जाता है। शेष स्थान में नक्षत्र धूली और कण विद्यमान है,परंतु ये बिखरी हुई अवस्था में है।
आप सब का अनोखा ज्ञान पे बहुत बहुत स्वागत है.